मोदी फिर बनेंगे प्रधानमंत्री या इंडिया गठबंधन की बनेगी सरकार ?
25 मई को छठवें चरण का मतदान होने जा रहा है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के अंदर खाने में घबराहट और इंडिया गठबंधन के नेताओं में जबरदस्त आत्मविश्वास को देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि सत्ता परिवर्तन की लहर पूरे देश में चल रही है। उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र और बिहार में तो लहर ही नहीं बल्कि सत्ता परिवर्तन की आंधी चलती प्रतीत हो रही है। इसका अंदाजा सत्ता पार्टी के नेताओं के भाषणों एवं विपक्षी गठबंधन के नेताओं के भाषण से भी लगाया जा सकता है। जहां तक मतदाताओं का सवाल है मतदाता चुपचाप अपना काम कर रहा है।
मतदाता मुखर नहीं है लेकिन मतदाताओं के हाव-भाव से और उनके बीच हो रही आपसी खुसुर फुसुर से ऐसा लग रहा है कि इस बार मतदाता कुछ नया करने का फैसला कर लिया है।
बड़े मीडिया हाउस में भले ही सच्चाई सामने ना आ रही हो परंतु सोशल मीडिया एवं यूट्यूब के वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा की जा रही राजनीतिक समीक्षा या विश्लेषण से इस बात को बल मिलता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी बहुत पीछे चली गई है। यह बात अलग है कि प्रधानमंत्री मोदी गृहमंत्री अमित शाह एवं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा जी अपने भाषणों में दावा करते जा रहे हैं कि पांचवें चरण में ही बीजेपी बहुमत प्राप्त कर चुकी है तथा अंतिम चरण के मतदान के बाद 400 पार का उनका सपना भी साकार हो जाएगा। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के नेता राहुल गांधी अखिलेश यादव तेजस्वी यादव उद्धव ठाकरे शरद पवार ममता बनर्जी एवम केजरीवाल दावा कर रहे हैं कि इस बार के चुनाव में मोदी जी को अपनी झोली लेकर हिमालय जाना पड़ेगा और इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी।
दरअसल आज की स्थिति और परिस्थिति वह नहीं है जो 2014 और 2019 में थी। 2014 में महंगाई भ्रष्टाचार एवं बेरोजगारी के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी ने इतना जबरदस्त कैंपेन किया था जिसके आगे मौन रहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी यूपीए सरकार कुछ नहीं कर पाई थी । देश के मतदाताओं को भी एक मजबूत विकल्प दिखाई दे रहा था इसलिए सत्ता परिवर्तन की लहर चली और 2014 में एनडीए की सरकार बन गई। यदि 2019 की बात की जाए तो बीजेपी को पुलवामा जैसा मुद्दा मिल गया जिसके कारण राष्ट्र प्रेम की भावना से मतदाताओं ने एक बार फिर मोदी जी को प्रधानमंत्री बना दिया। विपक्ष में राहुल गांधी के अलावा कोई नेता दिखाई नहीं दे रहा था और राहुल गांधी को भारतीय जनता पार्टी पप्पू साबित करने का सफल प्रयास करती रही तब लोगों को यह लगा था कि मोदी के सामने वास्तव में राहुल गांधी का कद बहुत छोटा है।
परंतु आज की स्थिति यह दर्शाती है कि राहुल गांधी एक मजबूत नेता के रूप में उभरे हैं और उन्होंने भारत यात्रा और न्याय यात्रा में पैदल चलकर पूरे देश को अपने कदमों से नाप लिया है। इस यात्रा से राहुल गांधी का व्यक्तित्व पूरी तरह से निखर गया है । इतना ही नहीं राहुल गांधी के प्रयास से ही इंडिया गठबंधन भारतीय जनता पार्टी को चुनाव में जबरदस्त टक्कर दे रहा है। नीतीश कुमार भले ही इंडिया गठबंधन छोड़कर बीजेपी में पुनः शामिल हो गए हो किंतु केजरीवाल ममता बनर्जी अखिलेश यादव उद्धव ठाकरे तेजस्वी यादव और शरद पवार जैसे नेताओं का साथ मिलने से राहुल गांधी ने इंडिया गठबंधन को इतना मजबूत कर लिया है की प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के चाणक्य अमित शाह जैसे दिग्गज नेताओं को भी 2024 के चुनाव में पसीना आ रहा है।
ये दिग्गज नेता भले ही चुनावी रैलियां में अपनी जीत का दावा करते रहे किंतु उनके चेहरों की उदासी और उनके चेहरों की शिकन यह दर्शाती है की उनकी धड़कने बढ़ गई है और वे यह मानने लगे हैं की इंडिया गठबंधन की आंधी को रोकने कि उनकी हर कोशिश नाकाम साबित हो रही है। यही कारण है कि चुनावी रैलियां में प्रधानमंत्री मोदी जैसे शानदार वक्ता अनाप-शनाप बातें कर रहे हैं और बार-बार झूठ बोलने के कारण उनके मुद्दे उन पर ही उल्टे पड़ रहे हैं। कभी मंगलसूत्र तो कभी भैंस और कभी पाकिस्तान या फिर हिंदू मुस्लिम के मुद्दे पर बोलकर बीजेपी के नेता अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारने का काम कर रहे हैं। क्योंकि देश का जागरूक मतदाता एक दो बार तो भ्रमित हो सकता है लेकिन बार-बार यदि झूठ परोसा जाए तो मतदाताओं को भी समझ में आने लगता है।
ईमानदारी का नकाब पहन कर बीजेपी सरकार द्वारा विपक्षियों के नेताओं को भ्रष्टाचार के आरोप में जहां एक ओर जेल में डालने का काम किया है वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे बड़े-बड़े नेताओं को भारतीय जनता पार्टी में शामिल करके मोदी और शाह ने यह बता दिया है की उन्हें सिर्फ सत्ता की कुर्सी चाहिए भले ही कीमत कुछ भी चुकानी पड़े । भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे विपक्षी नेता भारतीय जनता पार्टी के वाशिंग मशीन में धुल कर कैसे ईमानदार बन जाते हैं यह सब खेल मतदाताओं को अब समझ आने लगा है।
मतदाताओं को यह भी समझ में आने लगा है की चुनावी चंदा का जो खेल भाजपा सरकार द्वारा खेला गया और जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दूध का दूध पानी का पानी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनावी चंदा को लेकर जो खुलासा किया गया वह अब देश के सामने है और लोगों को समझ में आ रहा है की कौन ईमानदार है और कौन ईमानदारी का नकाब पहने हुए है। इस मामले में यह भी खुलासा हो गया की सरकारी एजेंसियों द्वारा जिन कंपनियों में छापा मारा गया उन कंपनियों ने भी सत्ता पार्टी को चुनावी चंदा दिया। इससे यह बात भी साफ हो गई की सत्ता का दुरुपयोग करके लोगों को डरा धमका कर करोड़ों रुपए बीजेपी द्वारा बड़े-बड़े उद्योगपतियों से वसूल किया गया। यह बात भी मतदाताओं के सामने खुल गई की कोरोना वैक्सीन कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी से भी इन्होंने चंदा लिया जबकि इस वैक्सीन से कितना साइड इफेक्ट हुआ है।
मतदाताओं को यह भी समझ में आ रहा है की महंगाई बेरोजगारी एवं भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों को लेकर आप सरकार में आए थे उसके बाद महंगाई और बेरोजगारी की क्या स्थिति है । जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है अब तक के राजनीतिक इतिहास में शायद ही किसी सरकार के कार्यकाल में इतना बड़ा भ्रष्टाचार हुआ हो। भ्रष्टाचार की परतें धीरे-धीरे खुल रही हैं। यदि सत्ता परिवर्तन हुआ और निष्पक्ष जांच हुई तो सब कुछ दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
जहां तक अब तक के मतदान के रुझान जो समझ में आ रहे हैं उसके मुताबिक महाराष्ट्र में 2019 में 48 में से 41 सीट जीतने वाली एनडीए को इस बार 9 सीट से अधिक सीट मिलने की संभावना नहीं दिख रही है वहीं उत्तर प्रदेश में 80 में से 62 सीट जीतने वाली बीजेपी की एनडीए को इस बार 40 से ज्यादा सीट नहीं मिल रही है। 42 सीट वाले बिहार में भी भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन को भारी नुकसान हो रहा है। मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में भी 2019 के मुकाबले 2024 में बीजेपी का स्कोर बहुत कम हो रहा है। पश्चिम बंगाल में पिछली बार बीजेपी को 18 सीट मिली थी किंतु इस बार बीजेपी को 10 सीट से कम पर ही संतोष करना पड़ेगा। दक्षिण भारत में तो वैसे भी कांग्रेस का दबदबा है इसलिए कर्नाटक आंध्र प्रदेश तेलंगाना तमिलनाडु और केरल में बीजेपी और उसके गठबंधन को निराशा ही हाथ लगेगी। केजरीवाल के प्रभाव वाले राज्य पंजाब और दिल्ली तथा हरियाणा में इंडिया गठबंधन भारी पड़ती दिखाई दे रही है। राजनीतिक पंडितों का अनुमान है कि इस बार बीजेपी 200 के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाएगी इसलिए उसके सहयोगी दलों के सहयोग के बावजूद भारतीय जनता पार्टी केंद्र में बहुमत से बहुत दूर होगी जबकि लगभग 300 सीट प्राप्त करके इंडिया गठबंधन बहुमत के स्कोर को प्राप्त करके सरकार बना सकती है। वैसे तो यह सब चुनाव परिणाम के पहले की अटकालबाजियां हैं । 4 जून को ही पता चलेगा की मतदाताओं ने क्या फैसला किया है और किसकी हार और किसकी जीत हो रही है।
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