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वंदे मातरम

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 सबके राम कण कण में राम एवम ईश्वर अल्लाह तेरो नाम मेरे लेख के प्रकाशन के बाद कुछ प्रतिक्रिया आई की वंदे मातरम अपने देश प्रेम व राष्ट्र के प्रति सम्मान का प्रतीक शब्द है किंतु सभी लोग वंदे मातरम नहीं बोलते  जो की गलत है।ऐसे लोगों के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए।जो वंदे मातरम नहीं बोलता उसे भारत में  रहने का कोई हक नही है।ऐसे लोगों को देश छोड़ देना चाइए।
क्या है संविधान में 
अब सवाल उठता है कि इस विषय पर संविधान में क्या प्रावधान है और वंदे मातरम क्या है ।  दर असल "वन्दे मातरम" एक राष्ट्रीय गान है जो भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है। इस वाक्य का अर्थ होता है "मैं तुझे प्रणाम करता हूँ, माता"। यह गाना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगला भाषा में लिखा था और पहली बार उनके 1876 के उपन्यास "आनंदमठ" में प्रकट हुआ था। गाने ने तेजी से पॉपुलैरिटी प्राप्त की और यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक ऐतिहासिक संगीत बन गया।
"वन्दे मातरम" ने भारतीयों में राष्ट्रभाव और एकता की भावना को उत्तेजित किया। गाने के शब्द एक मातृभूमि के प्रति गहरा जज्बा दिखाते हैं, भूमि को एक दैवीय और पोषण करने वाली माता के रूप में पूर्ण करते हैं। गाने की शक्तिशाली पंक्तियों और भावनात्मक संबंध से लोगों के बीच राष्ट्रभक्ति की भावना को उत्तेजित किया।

गीत की संगीत संरचना रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने की थी, जिन्होंने शब्दों को संगीत में एक नृत्यमय आयाम जोड़ा। वर्षों के बाद, "वन्दे मातरम" कई धुनों और शैलियों में गाया गया है, जिससे यह भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण में स्थान बना रखता है।

हालांकि, ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि "वन्दे मातरम" में कुछ विशिष्ट पंक्तियों पर कुछ मुसलमानों ने आपत्ति व्यक्त की थी, जिससे इसके सार्वजनिक स्थान पर इसका उपयोग परिस्थितियों के बारे में वार्ता हुई।

स्वतंत्रता के बाद, "वन्दे मातरम" को भारत का राष्ट्रीय गान मान्यता प्राप्त हुई, हालांकि यह राष्ट्रगान से अलग माना जाता है। इसे अक्सर राष्ट्रीय उत्सवों, सांस्कृतिक एकत्रितताओं और राष्ट्रीय समारोहों में गाया जाता है, जो मातृभूमि के प्रति एकता और प्रेम की स्थायिता का प्रतीक है।
कानून क्या कहता है
 भारतीय कानून में, "वन्दे मातरम" या किसी अन्य राष्ट्रीय गीत के सम्मान या असम्मान के प्रति सीधे प्रावधान नहीं हैं। भारत एक धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का देश है, और नागरिकों को अपने धार्मिक और सांस्कृतिक भेदभाव को मानने का अधिकार है, जो कि भारतीय संविधान द्वारा सुरक्षित है।

यदि कोई व्यक्ति "वन्दे मातरम" या किसी अन्य राष्ट्रीय गीत के प्रति समझदार नहीं है, तो उसे अपने विचारों को व्यक्त करने में स्वतंत्रता है। भारतीय संविधान में व्यक्ति को उसके विचारों और धार्मिक मत को स्वतंत्रता से व्यक्त करने का अधिकार दिया गया है।

ध्यान देना जरूरी है कि राष्ट्रीय गीत और गाने देश के एकता और आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं। संकुचित या विपरीत मत व्यक्ति के व्यक्तिगत दृष्टिकोण को सही नहीं ठहराता है। प्रतिबद्धता और समझदारी के भावना को ध्यान में रखकर, व्यक्ति को अपने विचारों को प्रकट करने का अधिकार दिया जाता है।

यदि किसी व्यक्ति के व्यवहार में किसी अन्य व्यक्ति के साथ अनैतिक या धार्मिक भावना की दिखाई दे, तो ऐसे कार्यों के खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया और कानूनी उपाय हैं। यदि कोई व्यक्ति धार्मिक या राष्ट्रीय गीतों के प्रति अपने विचारों को व्यक्त करना नहीं चाहता, तो उसे सामाजिक और धर्मिक दृष्टिकोण से उसके मत को व्यक्त करने का अधिकार है, और उसे इसके लिए कोई कानूनी संकुचन नहीं होगा।

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