शहडोल । जिला अभिभाषक संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप तिवारी ने देश में चल रहे भारत और इंडिया बवाल पर अपनी प्रक्रिया देते हुए कहा है कि 18 सितंबर 1949 को संविधान सभा में देश के नाम पर चर्चा हुई थी। अंबेडकर की ड्राफ्ट कमेटी ने सुझाव दिया था- India, that is, Bharat. इस पर काफी बहस हुई। आखिरकार सारे संशोधन खारिज कर दिए गए और यही नाम स्वीकार कर लिया गया। भारतीय संविधान के हिंदी अनुवाद में लिखा गया है- भारत, अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा
भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया था। जो भी ड्राफ्ट पेश किया गया और बहस के दौरान जो भी प्रस्ताव रखे गए वो अंग्रेजी में थे। संविधान सभा की बहस के दौरान 17 सितंबर 1949 को 'संघ का नाम और राज्य क्षेत्र' खंड चर्चा के लिए पेश हुआ। जैसे ही अनुच्छेद 1 पढ़ा गया- 'India, that is Bharat, shall be a Union of States', संविधान सभा में इसे लेकर मतभेद उभर आए। फॉरवर्ड ब्लॉक के सदस्य हरि विष्णु कामथ ने अंबेडकर कमेटी के उस मसौदे पर आपत्ति जताई जिसमें देश के दो नाम इंडिया और भारत थे।
कामथ ने कहा कि इंडिया दैट इज भारत कहना बेढंगा है। अंबेडकर ने संशोधन प्रस्ताव में कहा कि इसे ऐसे किया जा सकता है- भारत, जिसका अंग्रेजी नाम इंडिया है
कॉन्स्टीट्यूशन कमेटी ने कोई भी संशोधन प्रस्ताव स्वीकार नहीं किए और हमारे संविधान में देश का नाम भारत और इंडिया दोनों रखे गए। भारतीय संविधान की हिंदी कॉपी में आर्टिकल 1(1) में लिखा है, 'भारत अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा'। यानी भारत और इंडिया दोनों को बराबर माना गया है।
अगर देश का अंग्रेजी नाम इंडिया खत्म करके सिर्फ भारत करना है तो इसके लिए संविधान संशोधन करना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट में 13 जजों की खंडपीठ ने केशवानंद भारती केस में ऐतिहासिक फैसला दिया था कि संविधान संशोधन से संविधान के बुनियादी ढांचे में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए.....।
2012 में कांग्रेस सांसद रहे शांताराम नाइक ने राज्यसभा में एक बिल पेश किया था। इसमें उन्होंने मांग की थी कि संविधान की प्रस्तावना में अनुच्छेद एक में और संविधान में जहां-जहां इंडिया शब्द का उपयोग हुआ हो, उसे बदल कर भारत कर दिया जाए।
2014 में योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा में एक निजी विधेयक पेश किया था। इसमें संविधान में 'इंडिया' शब्द के स्थान पर 'हिन्दुस्तान' शब्द की मांग की गई थी, जिसमें देश के प्राथमिक नाम के रूप में 'भारत' का प्रस्ताव किया गया था।
देश का नाम केवल भारत करने की मांग को लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा चुका है. सबसे पहला मामला मार्च 2016 में सामने आया. याचिका की सुनवाई करते हुए देश का नाम इंडिया की जगह सिर्फ भारत करने की मांग को खारिज कर दिया था. उस वक्त तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा, भारत और इंडिया एक ही हैं. अगर आप भारत बोलना चाहते हैं तो वही बुलाइए लेकिन कोई इंडिया कहना चाहता है तो उसे इंडिया कहने दीजिए. इसके बाद साल 2020 में एक बार फिर
सुप्रीम कोर्ट में ये मामला पहुंचा.
उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने याचिका को खारिज करते हुए इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि संविधान में पहले से ही भारत का जिक्र है। संविधान में लिखा है 'इंडिया दैट इज भारत।
हमे याद कि वो बीजेपी ही थी जो 'इंडिया शाइनिंग' का नारा लेकर आई थी वो बीजेपी ही थी जो 'डिजिटल इंडिया', 'स्टार्ट अप इंडिया', 'न्यू इंडिया' जैसी कई ओर भी स्कीम चला रखी है तब भारत की याद नही आई अब चुनाव का समय है तो लोगो की भावनाओ के साथ खेलना है चुनावी लाभ के लिए महगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, जैसे बडे़ मुद्दों पर सरकार नाकाम रही आम आदमी को देने के लिए सरकार के पास कुछ भी नही है सिवाय हिन्दू /मुसलमान, भारत/ पाकिस्तान,और अब भारत/इन्डिया l
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