शहडोल। होली मिलन समारोह का बजट कहां से आएगा। मैं तो आप के कार्यक्रम में नहीं आऊंगा क्योंकि मैं होली के कार्यक्रम से सहमत नहीं हूं मैं तो कानून और व्यवस्था बनाए रखने पर विश्वास रखता हूं अभी तो कोविड-खत्म नहीं हुआ है । ऊपर से निर्देश मिले हैं कि होली जैसे कोई कार्यक्रम नहीं होने चाहिए इसलिए हमारा विभाग होली नहीं मनाएगा और ना ही होली के किसी कार्यक्रम में शिरकत करेगा।
उपरोक्त विचार सबसे बड़े साहब ने तब व्यक्त किए जब हम होली मिलन समारोह रंगोत्सव का आमंत्रण लेकर साहेब के पास गए और बार-बार हाथ जोड़कर विनम्र आग्रह किया । आश्चर्य तब हुआ जब सबसे बड़े साहब अपने विभागीय होली मिलन कार्यक्रम में शामिल हुए और इतना ही नहीं जमकर होली खेली। तब से लेकर अब तक प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ को संभाले हुए पत्रकारों के मन हो यह बात उत्पन्न हो रही है की हमसे क्या खता हो गई सबसे बड़े साहेब।
आप हमारे कार्यक्रम में क्यों नहीं आए। आखिर आपके दिमाग में क्या चल रहा है। किसने आपके कान भर दिए हैं। यदि किसी ने आपको बरगलाया है तो निश्चित रूप से हमारे ही बीच का कोई कर्मवीर होगा जो नहीं चाहता था कि हमारा कार्यक्रम सफल हो।
सबसे बड़े साहेब हम आपको बता दें की आप हमारे कार्यक्रम में भले ही नहीं आए परंतु जिन अधिकारियों ने भी हमारे कार्यक्रम में शिरकत की वह गीत संगीत के बीच रंगों के इस त्यौहार का खूब आनंद उठाया और इतना ही नहीं पत्रकारों की उमंग और तरंग को दोगुना कर दिया। साहेब मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यदि आप आते तो आपको भी खूब मजा आता।
दरअसल कोविड-लॉकडाउन के कारण 2 साल तक भारत के नागरिकों ने होली का त्यौहार नहीं मनाया था इस बीच सबके मन में फ्रस्ट्रेशन था जिसे दूर करने के लिए प्रेम और सौहार्द उमंग और उल्लास के रंगो के त्यौहार को मनाना आवश्यक था। और आपने देखा भी होगा कि शहडोल शहर में जितने भी होली के कार्यक्रम हुए सभी में अधिकारियों नागरिकों जनप्रतिनिधियों और समाज के हर वर्ग के लोगों ने खूब नाचा गया और गुलाल उड़ाया।
भारतीय संस्कृत में होली का यह त्योहार ऐसा है जिसमें दोस्त और दुश्मन भी हिंदू और मुसलमान भी क्रिश्चियन और पारसी भी पंजाबी और गुजराती भी प्रत्येक जाति धर्म संप्रदाय के लोग प्रेम और सौहार्द का बहुत ही अनुपम उदाहरण पेश करते हैं। पर बड़े साहेब आप तो कहते हैं कि होली का त्यौहार गलत है इसे नहीं मनाना चाहिए इसमें हुड़दंग होती है । मैंने तो आपसे कहा था कि आप हमारे कार्यक्रम में आइए और होली के त्यौहार के खिलाफ जो भी विचार आपके मन में हैं अपने उद्बोधन में व्यक्त कर दीजिएगा जिस पर आपने कहा था मैं ट्विटर में डाल दिया हूं।
सबसे बड़े साहेब हम तो बस इतना कहना चाहते हैं की आप बहुत बड़े हैं और आपके बड़े-बड़े काम है आपकी जिम्मेदारी अपराध रोकने की है और समाज को सुरक्षा प्रदान करने की है इस कार्य में हम पत्रकार भी आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चलते हैं और जब भी आप छोटी बड़ी सफलता प्राप्त करने पर मीडिया में प्रचार प्रसार करना चाहते हैं तब हम पूरे सहज भाव से आपका सहयोग करते हैं लेकिन दुख तब होता है जब आप हमारे छोटे से कार्यक्रम में भी हमारा उत्साहवर्धन करने की बजाए हमारे ऊपर किसी के कहने पर उंगली उठाने का प्रयास करते हैं। अर्थात आपका इशारा होता है की कार्यक्रम के लिए पैसा कहां से आएगा। क्या आपको नहीं मालूम कि देश की बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियां जो भी कार्यक्रम करती हैं उन्हें भी जन सहयोग लेना पड़ता है अर्थात उन्हें भी चंदा एकत्र करना होता है। किसी भी कार्यक्रम के लिए चंदा एकत्र करना अर्थात धन संग्रह करना भारतीय संविधान में अपराध नहीं है।
बड़े साहेब आप बुरा मत मानिए हम तो अपने मन की बात आपसे कह रहे हैं आप अपना हृदय विशाल बनाइए किसी के कान भरने पर कोई निर्णय मत लीजिए बल्कि अपने विवेक से भारतीय संविधान के अनुकूल उचित फैसला करिए। आप बड़े हैं हम आप का सम्मान करते हैं परंतु आपका भी कर्तव्य है कि हम जैसे छोटे पत्रकारों की भावनाओं को ठेस ना पहुंचाएं। धन्यवाद जय हिंद।
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