*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
पहले सुना था, अब देख रहे है कि जो ऊपर जाता है, वो नीचे आता है । पेट्रोल--डीजल का दाम हो अथवा भाजपा की विजय का ग्राफ हो, दोनो बे-लगाम ऊपर ही जा रहे थे कि अब नीचे आने की आहट से सभी ने राहत भरी सांस ली, फिर चाहे वो विपक्ष हो अथवा आम-आदमी हो । सुना है कि चार हजार करोड का घाटा उठाने का मन बना कर सूबे के मुखिया ने 11रू 95 पैसे प्रति लीटर, से "कर" हटा कर अपनी जनता-जनार्दन को मंहगाई से राहत दी है ।
भला हो मामा जी आपका । कर्जा उठा के विकास करने की शैली से तो सभी परिचित थे परन्तु घाटा को टाटा कह कर जितनी राहत अपनी जनता को आपने पेट्रोल-डीजल में दी वह भी एक रिकार्ड है । पडौसी राज्य लाखों दिये जला कर दिवाली मनाने के रिकार्ड बनाने में लगे रहे लेकिन आपने मामा जी तेल के खेल से लाखों लोगों के मन में जो जगह बना ली वह भी एक दिवाली है ।
मंगल दिवस, गोद भराई, पसनी, जैसे कामों के अलावा जूता चप्पल पहना कर आपने तेंदू-पत्ता हितग्राहियों का भी मन आपने जीता था
इस बार गोवर्द्धन दिवस पर मदन-मोहन की तरह लीला प्रगट कर छिंगली से मंहगाई का पर्वत उठा कर आपने जन--जन का मन मोह लिया ।
जनता का एक बडा वर्ग मंहगाई को "डायन"
मानता ही नहीं था ।
भक्तों की भक्ती का ऐसा सिक्का जमा था कि बहुत सारे लोग मंहगाई को "अप्सरा" मानने लगे थे । इस वर्ग के लोग उस दिन की भोर में बोर दिखने लगते थे जिस भोर में दूरदर्शनी बालायें प्रति लीटर 35 पैसे वृद्धि का समाचार सुनाने में देर कर देतीं थीं ।
मामा आपका धन्यवाद अदा करते हुये
एक सुझाव देने की खुजली से निजात पाना भी चाहता हूं । चार हजार करोड का घाटा
अगर मंत्री,सांसद,विधायक और इसी दर्जे के अन्य वी आई पी को मिलने वाली पेन्शन बन्द करके घाटे की खाई को पाट सकते हों तो जरूर विचार करें, क्यों कि सिर्फ और सिर्फ विधायक मद से ढोल-मजीरा, दरी झांझर हरमोनियम का अंशदान देने तथा प्रशासन के नजदीक रहकर इक्का-दुक्का ट्रांसफर से दिन गुजार रहे लोग अगर भविष्य की योजना पर काम न करें और रोजगार सृजन से पलकों को न खोलें तो वे जीवन भर की पेंशन का टेंशन आपकों क्यों दे रहे हैं । आपका रूतवा सदैव बुलन्द ही रहेगा , सिर्फ रैगांव विधानसभा सीट हाथ से फिसली तो क्या हुआ ,
पृथ्वीपुर और जोबट ने सुनहरे भविष्य की सुखद आहट तो हम सब को दी है कि तेल के दाम घट गये ।
इस बार एक तमन्ना फिर अधूरी रह गई के घाटी से सुगंधित शीतल मद भरी पवन के साथ जवानों के बीच दीपावली मनाते लेकिन सोचा कि सीमा पर दुश्मन से लड़ रहे सैनिक सक्षम है समृद्ध हैं खुशहाल हैं तो क्यों ना उनके परिवार जनों के साथ यही प्रदूषण युक्त तनाव से भरे वातावरण में दीपावली मनाएं आखिरकार जवानों का परिवार जिस महंगाई से लड़ रहा है वह भी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है यही सोच कर मैं दीपावली यही मनाया लेकिन बिल्ली के भाग से ऐसा छींका टूटा कि
तेल के दाम धडाम हो गये । मानों घर बैठे--बैठे चारोंधाम हो गये ।
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