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सर्वे भवंतु सुखिनः

 *आवारा कलम से  दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


                  ठंड उनका क्या  बिगाड़  लेगी,  जो पहले से ही ठंडे पड़े हैं । यह  ऐसा  सदाबहार मौसम है,जो हर गरीब को काश्मीर की वादियों से मचल कर उठी शीत लहरी का बोध करा जाता है और दुबले-पतले सींकिया शरीर के लोगों को भी बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य

देता है ।  अस्थिदर्शन शरीर पर ऊनी गर्म कपडे  बिना किसी संकोच के  जब इतराते है , सच मानिए गर्मवस्त्र धारक को रंचमात्र यह एहसास नहीं होने देते कि वह छप्पन इंची सीने का स्वामी नहीं है ।

    भीषण ग्रीष्म- रितु में

हवादार शरीरधारियों की

उपेक्षा करने वाली महिलायें जब शीतरितु में

कपडों से ओव्हरलोड  लोगों को देखती है,तो बरबस ही मुस्कान बिखेर कर बोल उठती है वाह! आज तो जम रहे हो ।  बस ! इतना सुनकर  कृषिकाया मंत्रमुग्ध हो कर विचरण करने लगती है ।        बाल-गोपालों को भी ऐसे कपडों में जमकर लपेटने वाली मातृशक्ति

पूरे शीत मौसम में इस बात से नि:श्चिंत रहती है कि उनका लल्ला कहीं गिर पड कर चोटीला न हो जाये । 

   यह मौसम की ताकत ही है , जब शादी-ब्याह अथवा पार्टियों में झीनीं झीनी रोशनी के बीच सौन्दर्यबोध करने वाले शोधार्थी निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि ईश्वर ने नारी की पीठ में सौर्य उर्जा प्लेट की स्थापना कर उसे शीत के प्रकोप से भयमुक्त किया है ।

 पवित्र नदियों और सरोवरों के घाटों पर

गूंजते मंत्र--सर्वे-भवन्तु

सुखिना, सर्वे रोग निरामय: ------।

जीवन में मधुरता का संचार कर दिलासा दिलाता है कि तेल के बढते दामों को खेल भावना से देख प्राणी

नकारात्मकता से परे हट कर मंहगाई को अपने

लिये वरदान समझ, जिसने बीपीएल के कांटों भरे जीवन से बाहर निकाल कर एपीएल की ए सी हवा में खडा कर लाइफ को परफ्यूम से लवरेज कर दिया है । 

    यही सार है--शेष बेकार है । पक्ष में मोक्ष है, विपक्ष तो ठण्डा पडा है , उसकी ओर निहार कर मंहगाई से मुक्ति का मार्ग प्राप्त करना सिर्फ मृगतृष्णा है । ठण्ड का आनन्द लो । सर्वे भवन्तु

सुखिना-----।

      हर मुश्किल का हल निकालो , घबराने से क्या होगा ?

    जिदंगी को जन्नत बनाओ , मर जाने से क्या होगा  ?

   ठंड की शुभकामनायें

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