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आपदा में अवसर

 *आवारा कलम से*दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


      इन दिनों देश में हर आपदा को अवसर में बदल  देने  का  मौसम बे- हद  गुलजार है ।  नेता जी  ने  रेडियो पर मन की बात कहकर लोगों को इतना प्रोत्साहित किया कि करवा चौथ पर रेडियो स्टेशन के आसपास ऐसी कई महान आत्मायें कतारबद्ध खडीं थीं जिनकी पत्नियां परदेश में थीं ।

    स्टेशन में उपस्थित स्टाफ ने फरमाइशी आत्माओं से 15 दौर की वार्ता के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि शहडोल रेडियो स्टेशन अब चूंकि प्ले नहीं डिस्प्ले सेन्टर बनकर रह गया है , इसीलिये वो मन की बात का सीधा प्रसारण तो नहीं करवा सकते परन्तु मन का गीत   जरूर   सुन   सकते हैं ।  फिर क्या था फिजाओं में स्वर तरंगें नशा घोलने लगीं और जगजीत सिंह का सदाबहार दिलकश नग्मा "हम तो हैं परदेश में,देश में निकला होगा चांद"

सुनकर सब झूमने लगे लेकिन जिन्हें  रेडियो भी नहीं मिल पाया, वह अपने मन की बात समाचार पत्रों के माध्यम से करने लगे । इन सबके बावजूद भी एक ऐसा वर्ग था जो उज्ज्वला योजना का लाभ लेने के लिए पहले उतावला हुआ और बाद में उसी योजना को हानिकारक समझकर बेचैन दिखने लगा  । उसके मन की कशिश थी कि सरकार के द्वारा सस्ता सिलेंडर दिखाकर, अब महंगा सिलेंडर दिया जा रहा है यह तो सीधा-सीधा धोखाधड़ी   का   मामला है । उस हितग्राही के पास  आमदनी का एक ही जरिया है,उसका अपना जन-धन खाता और इस खाते में जो भी आता वह सीधा-सीधा उज्जवला योजना में चला जाता । आमदनी और खर्च का गुणा भाग करने पर शून्य बटे सन्नाटा आता । भला ऐसे में भी कोई गुजर-बसर कर पाता ?

  ऐसे मन-पीडित को एक जागरूक नौजवान ने समझाया कि अपनी बात को पम्पलेट के माध्यम से रखो और सत्य को सामने रखो । घाटामयी लाभार्थी संकोच से दोहरा होकर कहने लगा । मोर दादा,

मै कइसन पम्पलेट ला

छपाहूं  ।

         नौजवान ने अपना 53 इंची सीना  फुलाकर कहा कि पहले मन बडा करो, फिर काम बडा करो  । देखा नहीं कैसे---कैसे लोग अण्डी-झण्डी न पकड कर महात्मा को पकडे है और पम्पलेट  छपवा कर

मोहल्ले का अन्ना बने है,

तुम तो नागरिक हो,   न कभी तुमने किसी नेता का नमक खाया और न किसी दल को पीठ दिखलाई ।   आवाज उठाना      तुम्हारा संवैधानिक    हक   है भाई । इस आपदा को अवसर में बदल दो और एक बार काम की बात तो कर लो ।

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