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साहित्य जगत के पुरोधा पूर्णेन्दु कुमार सिंह ने लिख दी 40 किताबें

उर्दू भाषा में तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी


शहडोल l यह विश्वास ही नहीं होता की शहडोल जैसे आदिवासी एवं पिछड़े अंचल में रहने वाला कोई कवि या साहित्यकार 40 किताबें लिख देगा क्योंकि एक किताब लिखने में ही रचनाकारों को वर्षों बीत जाते हैं परंतु पुलिस विभाग में इमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा की मिसाल बने उप पुलिस अधीक्षक से सेवानिवृत्त पूर्णेन्दु कुमार सिंह एक ऐसे रचनाकार हैं जिनकी अब तक 40 काव्य कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं इसके अलावा 15 पांडुलिपि  प्रेस मे प्रकाशित होने वाली हैं तथा 10 पांडुलिपि  तैयार हो रही हैं  l इतना ही नहीं तीन पुस्तकें उर्दू में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा तीन पुस्तकें बंगला भाषा में अनुवाद और प्रकाशन की प्रक्रिया में है l

 गीत संग्रह


आपने गीत संग्रह में जो किताबें लिखी है उनमें हरसिंगार ने ली अंगड़ाई, नेह के अक्षर, धूप कुनकुनी ,तुलसी चौरा, गोधूलि का मौन निमंत्रण, हे अनुरागिनी ,पवन पुरवाई, प्राणों के अनुबंध ,मन बंजारा, प्रात की रंगोली, केसर के सिवान ,रंग बिरंगी सांझ एवं  शुधियो का छल शामिल है lइसके अलावा कविता संग्रह में उन्होंने लिखा है कुछ अधूरे पृष्ठ ,मन के उपवन में एवं पतझड़ जबकि दोहा संग्रह में उनकी रचना है पूर्णेन्दु के दोहे एवं दोहा सप्तशती एवं कुंडलिया संग्रह में पूर्णेन्दु की कुंडलियों  l

गजल संग्रह

गजल संग्रह में कवि पूर्णेन्दु सिंह द्वारा 17 किताबें लिखी गई है जिनमें तारों की बारात, गजल की खुशबू ,तन्हा आसमान, ताजमहल जिंदा है ,कुछ हवन सा ,आओ अलिफ बे पढ़ें ,तेरे जादू तेरे मंतर, सेहरा सेहरा रातें ,दास्तान ए जिंदगी, मैं समंदर हूं ,अपना पता लिख देना .दरिया का मंजर ,तेरा सतरंगी आंचल, यादों के बादल, खत का जवाब लिखना, आवारा धुआ, प्रगति बनी बेताल एवं मन का मौसम शामिल है  l इसके अलावा शाहजहां गीत गजल संग्रह में पूर्णेन्दु सिंह ने लिखा है सृजनीका एवं कुछ हस्ताक्षर l

 सम्मान की लंबी श्रंखला


पूर्णेन्दु सिंह शहडोल संभाग के एक ऐसे साहित्यकार कवि एवं रचनाकार है जिन्हें अब तक 18 सम्मान प्राप्त हो चुके हैं जिनमें ज्ञान भारती सम्मान उमरिया, चेतना श्री सम्मान इलाहाबाद,जन जागरण सेवा सम्मान शहडोल, विराट सृजन सम्मान शहडोल, भारत भूषण सम्मान इलाहाबाद,शिशु वल्लभ अलंकरण इटावा, विंध्या शिखर सम्मान रीवा,सरस्वती सम्मान शहडोल, साहित्य पुरोधा सम्मान शहडोल,सुधांशु सम्मान शहडोल,आजीवन साहित्य सेवा सम्मान भोपाल, मेकल मेकल सम्मान अनूपपुर, तूलिका सर्जन सम्मान शहडोल ,वाता मन वागीश सम्मान उमरिया ,वाधव शिखर सम्मान उमरिया  , मुंशी प्रेमचंद सम्मान इलाहाबाद,  तिपान अंचल सृजन  सम्मान जैतहरी  एवं पारसनाथ स्मृति सम्मान से आपको नवाजा जा चुका है l

तीन राज्यपालों ने किया पुस्तक विमोचन

पूर्णेन्दु सिंह की प्रकाशित पुस्तकों का विमोचन इलाहाबाद शहडोल भोपाल इटावा रीवा तथा बिलासपुर में भव्य समारोह में 3 राज्यपाल शेखर दत्त, केसरीनाथ त्रिपाठी एवं राम नाईक द्वारा किया जा चुका है l चार पुस्तकों का विमोचन विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल में भी हुआl

जीवन परिचय

पूर्णेन्दु कुमार सिंह का जन्म 1 फरवरी 1941 को ग्राम सराय हिम्मत सिंह जिला प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में शिक्षक स्वर्गीय राज बहादुर सिंह के घर हुआ उनकी माता जी का नाम स्वर्गीय श्रीमती हरिनामा सिंह है l हिंदी साहित्य भूगोल और शिक्षा मनोविज्ञान से स्नातक की शिक्षा पूर्णेन्दु सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद में ग्रहण की है lमध्य प्रदेश महालेखाकार कार्यालय ग्वालियर में 1 वर्ष तक शासकीय सेवा करने के पश्चात आप मध्य प्रदेश पुलिस सेवा में 1964 से 2000 तक रहे lछत्तीसगढ़ पुलिस से 31 जनवरी 2001 को आप उप पुलिस अधीक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं lसेवानिवृत्ति के पश्चात आप कृषि  वृक्षारोपण एवं उद्यानिकी के कार्य में लगे रहते हैं तथा वृक्ष सुरक्षा अभियान में अनुरक्त हैं l

रुचियां

पूर्णेन्दु कुमार सिंह कि हॉबी की यदि बात करें तो साहित्य सेवा के अलावा प्रति रविवार को पिछले 15 वर्षों से अपने पुस्तकालय भवन में साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन करते रहते हैं तथा पूर्णेन्दु पुस्तकालय एवं शोध संस्थान की अपने खर्च पर स्थापना की है जिसमें हिंदी भाषा के शोधार्थी लाभान्वित होते हैं इसके अलावा आप कृषि कार्य, पशुपालन ,वृक्षारोपण एवं पर्यावरण सुरक्षा पर कार्य करते हैं l

शोध कार्य

कुमारी आभा सिंह द्वारा अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय से गीतकार ग़ज़ल कार पूर्णेन्दु कुमार पर शोध पूर्ण किया हैl

प्रखर प्रतिभा

अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा के हिंदी विभाग के वरिष्ठ आचार्य एवं अध्यक्ष प्रोफेसर दिनेश कुशवाहा कहते हैं कि उम्र के उत्तरायण में जिस प्रकार पूर्णेन्दु कुमार सिंह लिख रहे हैं यह उनकी प्रखर प्रतिभा का परिचायक है कहते हैं कि प्रतिभा का आणविक विस्फोट उम्र का मोहताज नहीं होता अधिकांश लोग मानते हैं कि असाधारण प्रतिभा ऊपर वाले की देन होती है तर्कसंगत बात है कि प्रतिभा परिश्रम से विकसित की जा सकती है एकलव्य का अंगूठा कांटा जाना अर्जित प्रतिभा को समाप्त करने का षड्यंत्र है l

 

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