शहडोल l देश के संविधान में देश को चलाने के लिए न्यायपालिका कार्यपालिका एवं विधायिका की व्यवस्था की गई है l इन तीनों स्तंभों के अलावा प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा पत्रकारों को दिया गया है l देश की आजादी के बाद समाज के हर क्षेत्र में बुराइयां आ गई है और प्रजातंत्र के इन चारों स्तंभों को भी बुराइयों ने अपने आगोश में ले लिया है l यही कारण है कि बेईमानी भ्रष्टाचार हिंसा दुराचार दिनोंदिन देश के अंदर बढ़ता जा रहा है ईमानदारी और नैतिकता का लगातार पतन हो रहा है इसके बावजूद व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका मे जितना पतन हुआ है उतना न्यायपालिका एवं पत्रकारिता में नहीं हुआ है आज भी सबसे ऊपर न्यायपालिका का स्थान बना हुआ है और पूरा समाज यहां तक कि पूरा राष्ट्र न्यायपालिका की इज्जत करता है l कुछ बुराइयां जरूर न्यायपालिका के अंदर घुस आई हैं और इस बुराई को हम भ्रष्टाचार के रूप में देखते हैं परंतु इसके बाद भी न्यायपालिका में ईमानदारी और निष्पक्षता का भरोसा देशवासियों में अभी है l
न्यायपालिका के बाद दूसरा स्थान प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता को मिला हुआ है अर्थात देश को यदि भरोसा करना पड़े तो सबसे पहले न्यायपालिका पर और उसके बाद पत्रकारिता पर देश भरोसा करता है l न्यायपालिका और पत्रकारिता के कारण ही आज भारत जैसे राष्ट्र की अस्मिता बची हुई है वरना व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका मे भ्रष्टाचार और बेईमानी तथा अन्य बुराइयां इतनी गहरी जड़े जमा चुकी है की यदि न्यायपालिका और पत्रकारिता ना हो तो देश को गर्त में जाने से कोई बचा नहीं सकता l
उपर्युक्त बातें किसी से छिपी नहीं है सर्वविदित है फिर भी आज इस विषय पर लिखने की जरूरत इसलिए मैं महसूस कर रहा हूं क्योंकि कल BJP की पत्रकार वार्ता में एक सवाल के जवाब में पार्टी के जिला अध्यक्ष कमल प्रताप सिंह ने यह बात कह दिया गई कि पत्रकारों का स्तर इतना गिर गया है की अब पत्रकारों को लोग कार्यक्रमोंंं में मुख्य अतिथि नहीं बनाते जबकि दो दशक पूर्व पत्रकारों को बहुत ज्यादा सम्मान मिलताा था इस पर सभी पत्रकार नाराज हो गए अंततः पत्रकारों से अपनी टिप्पणी के लिए भाजपाा जिलाध्यक्ष को माफी मांगनी पड़ी l
दरअसल राजनीति का स्तर पत्रकारिता के स्तर से ज्यादा खराब हो चुका है राजनीति में जितने गंदगी है उतनी प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ में नहीं है पत्रकारों पर लांछन लगाने वाले लोगों को अपने गिरेबान में झांकना चाहिए परंतु पत्रकारों को भी यह अहंकार नहीं करना चाहिए की दूसरों की आलोचना करने वाला और दूसरों को आईना दिखाने का काम करने वाला प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ दूध का धुला नहीं रह गया है इसके अंदर भी अनेक बुराइयां आ गई है और यह पहली बार नहीं हुआ है कि किसी नेता ने पत्रकारों के स्तर को खराब कहकर पत्रकारों को आईना दिखाया है lअनेक बार आए दिन यह देखने सुनने में मिल जाता है की व्यवस्थापिका न्यायपालिका एवं कार्यपालिका की भूमिका का निर्वहन करने वाले लोग प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ की आलोचना करने से नहीं चूकतेl
हम पत्रकार साथी भी यह समीक्षा आपस में बैठकर करते रहते हैं की पत्रकारों का स्तर निरंतर नीचे गिरता जा रहा है जिसके कारण समाज पत्रकारों को हिकारत की नजर से देखता है अधिकारी कर्मचारी और नेता सामने भले ही मीठा मीठा बोले और पत्रकारों का दिखावटी सम्मान करें परंतु पीठ पीछे वह भी गाली देते है l
यहां यह भी सच है कि अधिकारी या नेता या समाज का दूसरा वर्ग चाहे जितना गलत हो परंतु वो चाहता है की पत्रकार ईमानदार हो lयह एक विडंबना है कि जिस तरह से कोई भी पूंजीपति भले ही बेईमान हो पर वह अपना मुनीम ईमानदार रखना चाहता है उसी तरह से अधिकारी और नेnonता ठेकेदार और व्यापारी भले ही भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाते रहे परंतु वह चाहता है कि पत्रकार ईमानदार हो l
दरअसल देश की आजादी के पहले जो पत्रकारिता एक मिशन हुआ करती थी आज देश की आजादी के 74 सालों में पूरी तरह से व्यवसायिक हो गई है व्यवसायिक होना कोई बुराई नहीं है आज भी पत्रकार राष्ट्रहित में समाज हित में अपनी भूमिका का निर्वहन करता है: बावजूद इसके कुछ ऐसे लोग पत्रकार जगत में घुस आए हैं जो अपने गलत धंधे को संरक्षण देना चाहते हैं पत्रकारिता की आड़ में अवैध काले धंधे से धन कमाने की मंशा रखने वाले ऐसे पत्रकारों की वजह से प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ कलंकित होता है l
क्योंकि पत्रकारिता में घुसने के लिए कोई बेरियर नहीं है कोई योग्यता का मापदंड नहीं है चरित्र प्रमाण पत्र देना नहीं पड़ता इसलिए गलत मंशा रखने वाले लोग भी पत्रकारों की जमात में शामिल हो जाते हैं जिसके कारण अच्छे पत्रकारों को भी अपमानित होना पड़ता है एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है lभले ही लोग एक मछली के कारण पूरे तालाब को बदनाम करने लगते हैं जो कि उचित नहीं है l
पत्रकार जगत को कलंकित एवं अपमानित होने से बचाने के लिए ईमानदार और सच्चे पत्रकारों को कुछ कारगर कदम उठाने की जरूरत है ताकि बुराई मिट सके गंदगी साफ हो सके और पत्रकारों को उचित सम्मान प्राप्त हो सके इसके लिए यह भी जरूरी है कि हम अपनी गलती और हमारे अंदर की बुराइयों को हम स्वीकार करना सीखें साथ ही पत्रकारों की गलतियों को बताने वालों को बुरा भला ना कहें बल्कि उनका धन्यवाद ज्ञापित करें क्योंकि जो सच्चाई है उसे नकारा नहीं जा सकताl
इन पंक्तियों के साथ ही मुझे महान दार्शनिक कबीर के दोहे का स्मरण हो रहा है निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय बिन पानी बिन साबुना निर्मल करे सुहाय l
1 Comments
बिलकुल सही लिखा है आपने 👍👍
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