Header Ads Widget


 

Ticker

6/recent/ticker-posts

हैप्पी बर्थडे टू कान्हा

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार

   


    कान्हा ! कितना प्यारा नाम है--।  इससे भी ज्यादा प्यारा यह नाम तब लगता है , जब अमलतास के पेड़ से पीठ लगा कर बैठी राधा तिरछी नजर से देखते हुए मुरली मनोहर से अपने मन की बात कहती है । 

सुनो ! कान्हा, ये अमलतास के पीले फूलों का अंगूरी

गुच्छा मेरी वेणी में गूंथ दो । 

जमाने भर से मन की बात करते हो-- कभी हमसे भी अपने मन की दो बातें कर लिया करो कान्हा । 

मैं जानती हूं - आज तुम्हारा जन्मदिन है । सारा आर्यावर्त तुम्हें याद कर रहा होगा और तुम्हारी लीलाओं को दोहरा रहा होगा ।

तुम्हारे झूठ बोलने की कला से एक-एक

भरतवंशी, बहुत ही प्रभावित है । नटवरलाल

और नटखट माखनचोर

तुम कभी नन्दगांव से नहीं भागे लेकिन सुना है कि लोग बैंक से लोन लेकर देश छोड़कर भागने लगे । तुम्हारी अवतरित धरा पर श्यामा, केतकी, रम्भा,

 नारायणी गायें रंभा,रंभा

कर बतलाती हैं कि अब उनके दूध को बाल--गोपाल नहीं पीते ।

जानते हो कान्हा , अब अमूल पीता है इन्डिया ।

इस दौर में यदि कान्हा हम --तुम अवतार लेते ना तो सच मानो, मै भी दूध पीने अथवा मक्खन

खाने को न कहती बल्कि चाय पिलाती ।

चाय पीने का बडा क्रेज हो गया कान्हा ।

चाय पिलाने वाले को तुम्हारे भक्त सर-माथे पर ही नहीं बिठाते वो तो देश का प्रधान बना लेते हैं । 

याद आया कान्हा, हम तुम घर से भाग कर यमुना तीरे, कदम्ब की छांव तले कन्धे से सिर टिका  कर   घन्टों   बैठे-- बैठे  मन  की  बातें करते थे  तब

रेडियो नहीं था । वरना तुम रेडियो से मन की बात करते-----। नहीं कभी रेडियो पर मन की बात न करना कान्हा । सारी दुनियाँ सुन लेंगी, फिर वो मन की बात थोडी न होगी , है ना ।

कान्हा , मन जिससे मिले

उसीके सामने उसी के मन को अच्छी लगने वाली बात को मन की बात कहते हैं  ।

मत बोलो, जाओ । मै ही अकेली बोलती रहूंगी,

तुम्हारे शकुनी मामा के गंधार---कंधार में गर्मी भी बहुत है और बे-शर्मी

भी बहुत है ।

बोलो किसी अर्जुन से--

कि उठो,युद्ध करो ।

कर्मवीरता के तुम्हारे उपदेश वैसे सफल नहीं हुये जैसे छेड़खानी और रास रचाने के नाटक सफल हुये ।

लोग वहां से पलायन कर लेते जहां उन्हें युद्ध करना चाहिये और संसद जैसी जगह में युद्ध कर लेते जहां बैठ कर चर्चा करनी चाहिये ।

उल्टा--पुल्टा तामझाम करने के पीछे भी तुम कई राज छुपा कर रखते हो ,कान्हा । मैने तुम्हारा नाम छलिया इसीलिये रखा था । तुम मन छलते थे ना कान्हा !

 तुम्हारे भक्त मन नहीं, धन छलते  हैं । मन्दिर हो या मन हो कहीं अच्छा नहीं लगता ।

तुम्हारी बांसुरी की 

तान पर कान्हा आज भी रीझता है हिन्दुस्तान ।

कान्हा-----------------हैप्पी बर्थ डे टू यू

Post a Comment

0 Comments