*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
कान्हा ! कितना प्यारा नाम है--। इससे भी ज्यादा प्यारा यह नाम तब लगता है , जब अमलतास के पेड़ से पीठ लगा कर बैठी राधा तिरछी नजर से देखते हुए मुरली मनोहर से अपने मन की बात कहती है ।
सुनो ! कान्हा, ये अमलतास के पीले फूलों का अंगूरी
गुच्छा मेरी वेणी में गूंथ दो ।
जमाने भर से मन की बात करते हो-- कभी हमसे भी अपने मन की दो बातें कर लिया करो कान्हा ।
मैं जानती हूं - आज तुम्हारा जन्मदिन है । सारा आर्यावर्त तुम्हें याद कर रहा होगा और तुम्हारी लीलाओं को दोहरा रहा होगा ।
तुम्हारे झूठ बोलने की कला से एक-एक
भरतवंशी, बहुत ही प्रभावित है । नटवरलाल
और नटखट माखनचोर
तुम कभी नन्दगांव से नहीं भागे लेकिन सुना है कि लोग बैंक से लोन लेकर देश छोड़कर भागने लगे । तुम्हारी अवतरित धरा पर श्यामा, केतकी, रम्भा,
नारायणी गायें रंभा,रंभा
कर बतलाती हैं कि अब उनके दूध को बाल--गोपाल नहीं पीते ।
जानते हो कान्हा , अब अमूल पीता है इन्डिया ।
इस दौर में यदि कान्हा हम --तुम अवतार लेते ना तो सच मानो, मै भी दूध पीने अथवा मक्खन
खाने को न कहती बल्कि चाय पिलाती ।
चाय पीने का बडा क्रेज हो गया कान्हा ।
चाय पिलाने वाले को तुम्हारे भक्त सर-माथे पर ही नहीं बिठाते वो तो देश का प्रधान बना लेते हैं ।
याद आया कान्हा, हम तुम घर से भाग कर यमुना तीरे, कदम्ब की छांव तले कन्धे से सिर टिका कर घन्टों बैठे-- बैठे मन की बातें करते थे तब
रेडियो नहीं था । वरना तुम रेडियो से मन की बात करते-----। नहीं कभी रेडियो पर मन की बात न करना कान्हा । सारी दुनियाँ सुन लेंगी, फिर वो मन की बात थोडी न होगी , है ना ।
कान्हा , मन जिससे मिले
उसीके सामने उसी के मन को अच्छी लगने वाली बात को मन की बात कहते हैं ।
मत बोलो, जाओ । मै ही अकेली बोलती रहूंगी,
तुम्हारे शकुनी मामा के गंधार---कंधार में गर्मी भी बहुत है और बे-शर्मी
भी बहुत है ।
बोलो किसी अर्जुन से--
कि उठो,युद्ध करो ।
कर्मवीरता के तुम्हारे उपदेश वैसे सफल नहीं हुये जैसे छेड़खानी और रास रचाने के नाटक सफल हुये ।
लोग वहां से पलायन कर लेते जहां उन्हें युद्ध करना चाहिये और संसद जैसी जगह में युद्ध कर लेते जहां बैठ कर चर्चा करनी चाहिये ।
उल्टा--पुल्टा तामझाम करने के पीछे भी तुम कई राज छुपा कर रखते हो ,कान्हा । मैने तुम्हारा नाम छलिया इसीलिये रखा था । तुम मन छलते थे ना कान्हा !
तुम्हारे भक्त मन नहीं, धन छलते हैं । मन्दिर हो या मन हो कहीं अच्छा नहीं लगता ।
तुम्हारी बांसुरी की
तान पर कान्हा आज भी रीझता है हिन्दुस्तान ।
कान्हा-----------------हैप्पी बर्थ डे टू यू
0 Comments