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गरीबों के भगवान

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार

   


   अखबार में लिखे दस्तयाब शब्द को पढ़ने में दद्दू  को  5 मिनट लगे तीन   बार   तंबाकू  थूंके,  तब जा कर शुद्ध उच्चारण  कर के खुद ह॔सने लगे  ।  वरना दस्तआय, दस्तदाब, दस्तख्वाब, ही पढ कर बुदबुदाते रहे

और अखबार फेंकने वाले को कल फटकारने की योजना बनाकर दांत पीस-पीस  कर  यही सोचते रहे कि आजाद हुए 25 साल और बचे कि,सौ साल पूरे होने जा रहे हैं  लेकिन भारतीय पत्रकारों ने हिंदी को वह जगह नहीं दी ,  जो अपनी जुबान में देनी चाहिए । ऐसा लगता है कि आज भी हम मुगलिया सल्तनत का अफगानी अखबार पढ़ रहे हों ।

*दस्तयाब*

    शब्दों को खींचकर दादी बोलीं, जब रिकॉर्ड पुराना हो जाता है , तभी उसकी सुई अटकती है, तुम्हारी अकल मारी गई इतने बड़े अखबार में का एक ही शब्द लिखा है, जहां अटक गए  । आगे पढ़ो और आगे बढ़ो, सिर पर मत चढो ।

     अरी !  इसमें लिखा है ,    दस्तयाब   यानी खोई   चीज  को बरामद करना  । तुम्हारे भाई के के आस पास तीन चार घरों से कुछ बच्चे गायब हो गए थे , उनके बाप और महतारी छाती पीट-पीटकर सोच रहे थे कि अब बच्चों का चेहरा देखने को नहीं मिलेगा लेकिन जानती हो शहडोल की पुलिस ने खोए हुए सभी बच्चों को दस्तयाब कर लिया है । अब समझ गई दस्तयाब का होता है ?  मां बाप अपने बच्चों को पाकर गले लगा लिए खुशी से रोने लगे और जो पुलिस के अफसर थे ना अवधेश गोस्वामी और छोटी अफसर सोनाली गुप्ता उनको हृदय से धन्यवाद देने लगे और गांव के लोग तो यहां तक बोले कि अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिव मामा ने पूरे प्रदेश में एक मुहिम चलाई है कि जो बच्चे खोए हैं उन्हें ढूंढा जाए लेकिन शहडोल की पुलिस अपना काम समझ के अच्छा काम की , जबकि ऐसी खबर आसपास के जिलों में सुनने को नहीं मिली दादी बोली-- नाम तो सही लो  गोस्वामी तुलसीदास  ।

इतना सुनकर दद्दू चिल्ला पड़े ।  बुढ़िया खोपडिया से रामायण हटा--। अवधेश गोस्वामी

 मैने  सही  पढा । यही सही नाम है, ईमानदारी का और मेहनत का । गरीब के भगवान का ।

      कल अगर किसी की साईकिल खो जाती थी, तो कहां मिलती थी ? आज तो पूरे देश का कोना--कोना छानकर पुलिस बच्चों को वापस ला रही है और उनके मां बाप को सौंप रही है ।  जिस गरीब की आंखें रो-रोकर सूख गई थीं,  वह अपने भाग्य को कोसकर शांत बैठ गए थे और यही समझने लगे थे कि भगवान को यही मंजूर होगा ।   अचानक उनकी जिंदगी में नई रोशनी आई , घर-गांव में  सब  खुशी  से  झूमने लगे । दादी भी आंखों में आए खुशी के आंसू पोंछते हुए बोलीं,  भगवान भला करे पुलिस का, जिसने रामभजन की   औलाद   ढूंढ निकाली ।

 पूरे शहडोल जिले के हर चौथे पांचवें गांव में पुलिस कप्तान अवधेश गोस्वामी और मुस्कान अभियान की प्रभारी सोनाली गुप्ता के चर्चे खूब गर्म है ।  धनाभाव से मजबूर जीर्ण-शीर्ण  काया माया धारी के पास सिर्फ दुआएं हैं जो नीले आसमान को देख कर दोनों हाथ उठाकर पुलिस की ओर दुआएं लुटा रहा है ।

कभी कहीं दिल स्पर्शी खबरों को छाप कर अखबार भी मानस की चौपाई बन जाते हैं

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