*आवारा कलम से* Dinesh दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
चाय पर चर्चा करो यारो , कुछ तो समय खर्चा करो यारो, बढ़ गए भले ही सिलेंडर के दाम तो क्या ? चादर तान, आराम करो यारो ।
हम आजादी के 75 साल चर्चा करते--करते पूरे कर चुके । अब हमें आशा भी है और विश्वास भी है कि अगले 25 साल चर्चा करते--करते हम आजादी का शताब्दी वर्ष मनाएंगे ।
आज हमारा देश पूर्णत: समस्या मुक्त और आत्मनिर्भर बन गया है । ओलंपिक से गोल्ड लेकर दुनिया में डंका बजा दिया । इधर जो समस्याएं हमारे देश में बचीं थीं, उन सभी को हमने पड़ोसी देश में भेज दिया ।
आज हमें गर्व है कि यहां पर लोग महंगाई के प्रति बिल्कुल निराश नहीं है ,उत्साह और उमंग से झूम-- झूम कर गीत गा रहे हैं और मांग कर रहे हैं की गैस सिलेंडर का दाम राउंड फिगर में हजार रुपे कर दीजिए ताकि उस टुच्चे से पाकिस्तान को गर्व के साथ हम भारतवासी आन-बान- शान से बता सकें कि भिखमंगे तुम कहां खडे हो और हम कहां है ? सस्ती और खस्ती हालत से हटकर हम मस्ती का जीवन जी रहे है । सौ रूपये का एक लीटर पेट्रोल और डीजल तो मुहल्ले के बे-रोजगार लडके खरीद कर मटरगश्ती करने निकलते है । बेटा पाकू
भिन्डी की सब्जी का छौंका, हम सरसों के तेल से लगाते हैं । दाम वाम की चिन्ता गांव का रामदेव तक नहीं करता । किसान खुशहाल है एमएसडी का नाम पा रहा हूं आगे सुनहरे भविष्य को देख रहा है जिन्हें अपना भविष्य सुनहरा नहीं दिख रहा उन्हें सरकार भी नहीं देख रही ।
जब से हम आत्मनिर्भर हुये ना बे अपुन ने नीचे देखना ही छोड दिया । ऊपर और ऊपर देखते हैं । सुना नहीं तुमने---ऊंचे लोगों की ऊंची पसंद ।
सुना है ! अमेरिका इस वक्त कुछ तंगहाली से गुजर रहा है । दुनिया का सेठ कहलाने वाला
आज मंदी देख रहा है । लगता है कि सब
लाॅफ्टर की बातें है ।
वियतनाम , सीरिया ईराक के बाद अब अफगान से मात खा कर जिसने सत्तर साल पुराने दोस्त का भी राशन-पानी बन्द कर दिया हो उस पर भी हम भरोसा करके कह सकते है कि दादा भाई कोई जरूरत महसूस हो तो हमें याद करना । दो आने का भी टैक्स लगाने पर हम इतनी रकम जोड लेते है कि आप उसका तोड नहीं ढूंढ सकते ?
हमलोग सिर्फ और सिर्फ अर्थशास्त्र पर ही नहीं टिके रहते बल्कि
जुगाड शास्त्र भी आत्मसात किये बैठे है ।
जैसे उज्जवला का नि: शुल्क उजाला दिखाकर रिफिलिंग की सब सिडी से कम्पनी का हिसाब चुकता कर दिया । कम्पनी खुश होकर नोट देगी और उज्जवला वोट दिलायेगी । इसे ही कहते हैं जुगाड ।
चर्चा करते करते हमने कोविड-19 की आपदा को अवसर में बदल दिया और देश के सवा चार करोड़ बच्चों को पास कर दिया । बाढ़ कोई समस्या नहीं है, यह तो मौसम है, जोआज है वो कल चला जाएगा । कुछ लोगों को बर्बाद किया तो कुछ लोगों को आबाद कर जाएगा हर साल आपदा प्रबंधन का बजट आवंटित होता है फिर आपदा का आवंटन होना भी तो जरूरी है इसीलिए दोनों पैरनल चलते रहते है । चर्चा चाहे जितनी छोटी करो बड़ी हो ही जाती है, चाहे जिधर से शुरू करो इधर उधर हो ही जाती है कोविड-19 की सुस्ती बतला रही है कि चुनावी मौसम आने वाले हैं । इसीलिए एक पार्टी ने जन संवाद यात्रा निकाली तो दूसरी पार्टी जन आशीर्वाद यात्रा निकाल रही है । दोनों एक दूसरे से पूछ रहे हैं जब सत्ता में 15 साल से नहीं थे तो जनता से संवाद क्यों नहीं किया जो आज संवाद करने निकले हो ? यह सुनकर इधर वाले पूंछते हैं कि, 15 साल से तुम भी सत्ता में बैठकर जन आशीर्वाद पा रहे हो तो फिर अब क्यों आशीर्वाद लेने निकाल रहे हो ?
लोग देख रहे हैं कि उनके पास न जनसंवाद वाले पहुंच रहे न जन आशीर्वाद वाले पहुंच रहे हैं लेकिन नाम उसी "जन" का ले रहे हैं जिस "जन" को शुरू से बेवकूफ बनाते आ रहे हैं और बनाए रखने का इरादा रखते हैं ।
चलो , चर्चा को यहीं विराम देते हैं, फिर मिलेंगे । तब काम की बात करेंगे । जय हिन्द ।
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