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बनी रहे किसान की खुशहाली

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार

        हिंदुस्तान में प्रेम बिखरा  पड़ा  है ।


 पर्वतों पर ,  मैदानों में , घाटियों में और रेगिस्तान में,  कहीं भी आप चले जाएं--- आपको और कुछ मिले ,या--ना मिले लेकिन प्रेम जरूर मिलेगा ।

 यह प्रेम सहज भी है, और सरल भी है बल्कि मैं तो यहां तक कहूंगा कि आज कजलइयों के सबसे छोटे और सस्ते पर्व पर प्रेम का दायरा और बढ़ाना चाहिए । अपने पुरखों ने      नई   फसल   की  नई  कोपलों को हाथ में लेकर स्वजनों के बीच इनका आदान--प्रदान करने की जो परंपरा डाली थी, उसके पीछे अबोला सत्य यही था कि हमने फसल तैयार करने का प्रयास शुरू किया है, अब जरूरत है कि आप और हम दोनों मिलकर   इसकी   रक्षा करें ।  

        शनै: शनै: कृषि कार्यों में विज्ञान का प्रवेश हुआ और मानव ने संस्कृति मैं भी हल्के-फुल्के बदलाव शुरू कर दिए ऐसा भी दौर था जब पढ़ लिखकर लड़कों के हाथ में डिग्रियां सौंपी जाती थी तब उनके अंदर वही प्रसन्नता और उत्साह देखने को मिलता था जो कजलियां के आदान-प्रदान में मिलता था  ।  विकास की दौड़ में और आगे बढ़ने के बाद अब हालात यहां तक पहुंच गए कि कजलियों और डिग्रियों के आदान-प्रदान की यही खुशी वैक्सीनेशन के दौरान मिलती है । जब किसी को वैक्सीन का टीका लग जाता है तब उसके चेहरे पर ऐसी खुशी की लहर देखने को मिलती है  जैसे  जिंदगी का दान हो रहा हो, ऐसा मार्मिक दृश्य उत्पन्न हो जाता है मानो किसी मरते हुए आदमी को यह टीका लगाकर हम नई जिंदगी दे रहे हैं । वह भी हंसता हुआ टीका लगाने वाले के प्रति आंखों से आभार प्रकट करके आगे बढ़ता है  । उसे नहीं मालूम कि पहला डोज पर्याप्त है ,या दूसरा डोज पर्याप्त है अथवा दोनों के बाद तीसरा कोई डोज लेना पड़ेगा और वह पर्याप्त  होगा ? उसकी जिज्ञासा और बढ़ती है कहीं ऐसा तो नहीं कि वैक्सीन का चौथा और पांचवां डोज भी लेना पड़े  ।

   इस कोविड-19 महामारी ने जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है इन्हीं में से काजलियो का यह त्यौहार भी लपेटे में आ गया अब वह पुराना उत्साह देखने को नहीं मिलता हां यह जरूर है किस देश का किसान सड़कों पर पिछले 9 महीने से बैठा  है अच्छा हो कि शक्ति से और गंभीरता से किसानों के प्रति संवेदना रखकर समस्याओं का समाधान खोजा जाए वरना जिस देश में किसान खुश ना रहे उस देश की खुशहाली को ग्रहण लग जाता है ।

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