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शहडोल l प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ का दर्जा प्राप्त पत्रकार साथियों को यह बात बहुत अच्छी तरह मालूम है कि पत्रकारों की देश और समाज हित में क्या भूमिका हैl यह बात सभी जानते हैं की देश की आजादी के पहले पत्रकारों ने क्या किया और आजादी के बाद देश के विकास में हम पत्रकार क्या भूमिका निभा रहे हैं l
आजादी के पहले जहां पत्रकारिता एक मिशन हुआ करती थी वहीं दूसरी तरफ आजादी के बाद पत्रकारिता व्यवसायिक हो गई है व्यवसायिक पत्रकारिता कुछ गलत नहीं है अपना और अपने परिवार का जीवन चलाते हुए भी पत्रकारिता की जा सकती है l ऐसा करते हुए भी अनेक पत्रकारों ने आदर्श प्रस्तुत किया है यह बात अलग है कि पत्रकारिता के इस पेशे में कुछ ऐसे लोग घुस आए हैं जो अपने वैध अवैध धंधों को या फिर अपराधिक गतिविधियों को संरक्षण देने के लिए पत्रकारिता का नकाब पहनकर पत्रकारिता के चौथे स्तंभ की गरिमा को प्रभावित कर रहे हैं l
दरअसल पत्रकारिता के पेशे में कोई बैरियर नहीं है योग्यता का मापदंड निर्धारित नहीं किया गया है इसलिए पुलिस और प्रशासन पर दबाव बनाने के लिए ऐसे कुछ लोग पत्रकारिता जैसे पवित्र पेशे को दूषित करते रहते हैं इसके बावजूद अनेक पत्रकार ऐसे हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन पूरी ईमानदारी एवं कर्तव्य निष्ठा के साथ पत्रकारिता में लगा दिया है ऐसे लोगों की रोजी रोटी पत्रकारिता से ही चलती है आर्थिक तंगी के बावजूद वह पत्रकारिता के गरिमा को बचाए हुए हैं जब उनकी कलम चलती है तब कहीं ना कहीं समाज हित और देश हित का संदेश छुपा होता है l
शासकीय अधिकारी हो या राजनेता यदि कहीं भ्रष्टाचार हो रहा है तो सच्चे पत्रकारों की कलम जरूर चलती है जिस तरह से पत्रकारिता के पेशे मे कुछ ऐसे तत्व जुड़ गए हैं जो पत्रकारिता को बदनाम कर रहे हैं उसी तरह प्रशासन में भी नीचे से ऊपर तक भ्रष्टाचार का बोलबाला व्याप्त है राजनेताओं के भ्रष्टाचार की कहानी तो जगजाहिर है इसीलिए कोई भी राजनैतिक पार्टी की सरकार हो भ्रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में बातें तो बहुत की जाती है परंतु वास्तविकता में भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा दिया जाता है ऐसी स्थिति में कई बार अधिकारी कर्मचारी मजबूरी में बहती गंगा में डुबकी लगाने के लिए विवश हो जाते हैं lलोकेश जांगिड़ जैसे ईमानदार आईएएस अधिकारी विरले ही मिलते हैं कुल मिलाकर मैं जो बात कहना चाहता हूं उसका मतलब सिर्फ इतना है की शासकीय अधिकारी-कर्मचारी हो या राजनेता या फिर पत्रकार उसे यह बात ध्यान में रखना चाहिए की यदि आप जानबूझकर या मजबूरी में भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगा रहे हैं या फिर उल्टे सीधे काम कर रहे हैं तो आपको यह कहावत याद रखनी चाहिए की सूपा बोले तो बोले चलने क्या बोले lअर्थात ऐसे लोगों को समाज को यह सीख नहीं देनी चाहिए की पत्रकारिता का स्तर क्या होना चाहिए या फिर इमानदारी क्या चीज हैl इस बात पर मुझे बहुत दुख होता है कि हमारे कुछ पत्रकार साथी अपने वरिष्ठ पत्रकार साथियों को यह बताने से नहीं चूकते की पत्रकारिता का स्तर गिर रहा है और वे भ्रष्टाचार को उजागर करने वाली खबरों पर टिप्पणी करते हुए ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की चमचागिरी करते दिखाई देते हैं जिनके बारे में कुछ भी छिपा नहीं हैl
दरअसल ऐसे पत्रकार साथियों को अपने काले पीले धंधों को पनाह देने की चिंता रहती है इसीलिए वह सोशल मीडिया में ऐसा कुछ लिख देते हैं जिससे उनकी तारीफ करने की बजाय लोग उन पर ही उंगली उठाने लगते हैं इसलिए मैं तो सिर्फ एक बात और यह कहना चाहता हूं की जिनके घर कांच के हो उन्हें दूसरे के घर में पत्थर नहीं मारना चाहिए. l साथ ही चलनी जैसे हजारों छिद्र यदि हमारे अंदर हैं तो हमें शूपा की तरह बोलना नहीं चाहिए l
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