*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
दोपहर भी ढलने लगी लेकिन सांप नहीं दिखे । कटोरे में रखा दूध दो बार बिल्ली पी गई । हे प्रभो ! नाग
देवता आज नागपंचमी पर अगर दुग्धपान नहीं करेंगे, तो हमारी सनातनी इस परम्परा का भावी पीढ़ी कैसे अनुसरण करेगी ?
सारे नाग गए कहां, इसकी खोज--खबर करेगा कौन ?
यही हालत रही तो राशन की दुकानों पर आधार कार्ड दिखाकर सरकार भविष्य में नाग दर्शन कराएगी वही दूध पिलाने की व्यवस्था होगी एक परिवार से एक सदस्य नाग देवता को दूध पिला कर पूरे परिवार को कृतार्थ समझेगा ।
पता नहीं हमारी संस्कृति पर किस दुराचारी की नजर लगी एक कवि मंच से मैंने किसी कवि को सुना था जो बतला रहा था कि सारे नाग संसद भवन में चले गए अगर यह सच है तो संसद का सत्र समाप्त हो जाने के बाद इन्हें अपने अपने क्षेत्र में लौट आना था ताकि जनता का यह त्यौहार कोरा कोरा तो ना बीतता
,बचपन की बातें याद है ,जब नाग पंचमी आती थी सुबह सवेरे से गली मोहल्ले में बीन की धुन कानों को सुकून देती थी सपेरे घूमने लगते थे उनकी बीन की मधुर तानें आज भी याद हैं ।
" मेरा मन-- डोले तेरा तन डोले, मेरे दिल का गया करार रे कौन बजाए बांसुरिया"
"मैं तेरी दुश्मन तू दुश्मन मेरा, मैं नागिन तू सपेरा" ।
स्कूल में यह कविता याद कराई जाती थी-- "सूरज के आते ही भोर हुआ , लाठी लेझिम का शोर हुआ । नागपंचमी झम्मक झम्म ।
ढोल ढमाका, ढ्म्मक ढम्म । मल्लों की जब टोली निकली चर्चा फैली गली गली ।
दंगल हो रहा अखाड़े में चंदन चाचा के बाडे में
अब ना जाने क्यों त्योहारों पर वह उमंग नहीं रही उत्साह नहीं रहा रौनक नहीं रही, होली भी फीकी ,दिवाली भी फीकी , नाग पंचमी गुजर रही, रक्षाबंधन पर भी महंगाई की मार पड़ती दिख रही है । धीरे धीरे हम विकसित होते जा रहे हैं और अपनी पुरानी रीति-रिवाजों को भूलते जा रहे हैं । यही कारण है कि अब तीज त्यौहार अच्छे नहीं लगते यहां तक की नाग पंचमी पर नाग भी नहीं दिखते ।
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