*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
धधकते और चीत्कार करते अफगानिस्तान के एक पुजारी ने जब यह कहते हुए देवालय को नहीं छोड़ा कि जिन देवी देवताओं की हमारे पूर्वजों ने आराधना की है , उनकी सेवा की है , मैं अपने ऐसे आराध्य देवता को छोड़कर जिंदगी की पनाह मांगने कहीं नहीं जाऊंगा ।
एक तरफ जहां मंदिरों और मठों में पुजारियों का चयन होता है, विधिपूर्वक परीक्षा लेकर जिनकी नियुक्ति होती है , जिन पुजारियों को वेतन ,मानदेय ,भत्ते और तमाम सुविधाएं मिलती है, उन्होंने भी टीवी चैनलों के बाजार में इस मनभावन खबर को जरूर सुना होगा , समझा होगा कि ऐसी भक्ति भी होती है । ऐसा समर्पण भी होता है । पुजारी को धर्म और मानवता के बीच ऐसा सेतु कहा जाता है जो विचलित मस्तिष्क में शांति के सुगंधित पुष्प खिलने का वातावरण बनाता है , परन्तु सीना--चीर प्रदर्शन की धर्मनिरपेक्षता ने धर्मगुरूओं को भी वोट बैंक का खजांची बना दिया ।
आप सब जानते हैं कि तालिबानी अपनी क्रूरता की चरमता पर जब निंदनीय प्रदर्शन कर रहे है , वहां के निर्वाचित जनप्रतिनिधि जिन्होंने कभी अपने कर्तव्यों की ईमानदारी से निर्वहन करने की शपथ ली थी पीठ दिखला कर देश छोड़कर कायरों की तरह भाग रहे हैं । महिलाएं और बच्चे भूखे पेट रहकर सूनीं आंखों से जिंदगी की भीख मांग रहे हैं ,इस दुनिया के सारे मुल्क तमाशे की तरह पूरी घटना को देख रहे हैं, तब एक पुजारी की ये पंक्तियां शिलालेख की तरह अमिट हो जाती हैं । शायद किसी को झकझोर भी देती हों कि हमें अपने कर्तव्य से नहीं भागना चाहिए । इतिहास भगोड़ों को कभी माफ नहीं करेगा । आने वाली पीढ़ियां उन्हें कोसेंगी जिन्होंने कर्तव्य के निर्वहन से पीठ दिखलाई । पुजारी ही है जो पड़ोसी धर्म की व्याख्या करता है और बतलाता है कि पड़ोस में अगर विपत्ति हो तो हमें क्या करना चाहिए ? अफगानिस्तान के कई पड़ोसी देश आंख पर पट्टी बांध के अपने शस्त्रागारों को महफूज बना कर रखे हुए हैं । कभी-कभी तो ऐसा ख्याल आता है कि किसी को तो आगे आ कर इंसानियत का फर्ज अदा करना होगा ।
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