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टीवी चैनलों का एक ही राग

 *आवारा कलम से*

        दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार  


  टीवी चैनल के इतिहास में ऐसा भी एक दिन निकला, जिसका वर्णन स्वर्ण अक्षरों में किया जाएगा ।

           9 अगस्त 2021 के दिन पूरे चैनल खेल को समर्पित रहे ।   वैसे  बड़े गर्व की बात है कि जब भारत के किसी खिलाड़ी ने  वर्षों  बाद  भाला फेंक कर स्वर्ण पदक पर हक जमाया हो तब खेल और सोने में रूचि रखने वालों का पूरा समर्पित भाव से गाल बजाने का अवसर बनता है  ।

     आदिवासी दिवस पर आज आदिवासियों  ने भी मानो अपने सारे कार्यक्रम खेल और खिलाड़ी के नाम समर्पित कर दिए हों सबके सब, खेल भावना से ओत--प्रोत लगे ।

         क्रांति दिवस का जनक, "भारत छोड़ो आंदोलन" --   सिर्फ इसलिए धुंध में चला गया कि आज सारे देश का माथा गर्व से ऊंचा दिखा कि भारत का खिलाड़ी स्वर्ण पदक लेकर भारत आया है ।

     राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भारतीय मुद्रा पर अंकित करने वाला यह देश भला गांधी को कैसे भूल सकता है ? रही बात उसके भारत छोड़ो आंदोलन की तो उस पर फिर कभी चर्चा कर लेंगे ।

           एक चैनल पर फिल्मी गीत की धुन आ रही थी ------‐

      "यह  देश  है  वीर जवानों का, दीवानों का मस्तानों का ,

 इस   देश   का यारों क्या कहना---- यह  देश   है,  दुनिया का गहना "।

सुनकर,  तबीयत खुश हो गई ।  बात भी समझ में आ गई । सचमुच यह देश नीरज चोपड़ा और बजरंगी जैसे युवा साथियों का है, जिन्होंने टोक्यो की धरती पर छाती ठोक कर विजय श्री का ध्वज फहराया ।

    बचपन में मैंने इसी गीत को तब सुना था जब किसी की बारात जा रही थी और उसमें पतले--दुबले, कंधे झुके हुए, कुछ युवा, कुछ वृद्ध  युवा, कुछ बिल्कुल  बृद्ध  हाथ ऊपर करके कुछ इस तरह थिरक रहे थे मानो बरसात में सड़क पर पड़े गंदे पानी से बचकर चल रहे हों, यही गीत हर शादी में अनिवार्य रूप से ऐसे बजाया जाता था मानो दूल्हे सहित सारे बारातियों का  मनोबल इसी गीत से बढता हो ।

मेरे दिल- दिमाग में उन्हीं लोगों की तस्वीर बैठी थी और मैं यही समझ रहा था कि देश पर इन्हीं लोगों की बपौती है । यही वीर हैं ।  देश की बागडोर इन्हीं के हाथों में सौंपी जानी है ,  लेकिन टीवी चैनलों पर वर्षों बाद जब  यह गीत फिर बजा तो स्थिति बिल्कुल साफ हो गई  कि नीरज-बजरंगी जैसे युवा होने चाहिए ।

इस देश में कोविड-19 के बाद सोशल डिस्टेंस बढ़ जाने और मजबूरी में स्कूलों के बंद हो जाने से जो अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य के प्रति सशंकित थे , उनके बच्चों का परीक्षा फल सरकार ने फौरी तौर पर घोषित कर अभिभावकों को बहुत बडी राहत दी लेकिन ताजा ताजा गोल्ड मेडल यह संदेश बड़ी तेजी से अभिभावकों तक पहुंच रहा है कि वे अपने बच्चों की नौकरी के लिए बिल्कुल परेशान मत हों क्यों कि युवा वर्ग के सामने खेल का मैदान खुला पड़ा है । युवा यदि चाहे तो वह नौकरी के पीछे ना भागकर खेल की भावना से मैदान में भागने लगे ताकि आने वाला वक्त उन्हें सर माथे पर उठाएगा और इस देश का युवा इतना सोना लेकर आएगा कि दुनिया देखकर दंग रह जाएगी ।

    ओलंपिक के मैदान से जो खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन करके लौटे, वह लगभग लगभग सभी ऐसे घरानों से थे जहां मोटी रोटी और टमाटर की चटनी से पेट भरा जाता है । कहने का मतलब एक भी युवा साथी ऐसा नहीं था जो हार्लेक्स पीता हो, स्वयं को काॅप्लेन बुआय  अथवा काॅप्लेन गर्ल 

कहता हो । फालतू  बातें हैं कि सारा विटामिन डिब्बे--डिब्बियों में भरा है । मस्त बिटामिन तो मनप्रीत की माॅ द्वारा बनाये गये चूरमे के  लड्डुओं में है ।

      भारत सोने की चिड़िया था, किसी जमाने में, आज यहां सोना-----चिडिया है ।

इसका संबंध भारत में सोने की कमी है , इस बात से ना लगाया जाए कहने का मतलब मेरा था  कि भारत में उड़ कर सोना आता है । कभी --कभी कस्टम के द्वारा ऐसी चिड़िया को पकड़ भी लिया जाता है फिर भी चतुर चालाक पंछी अपना बसेरा ढूंढ ही लेते हैं । सोना हर रास्ते से भारत में आता है लेकिन युवा खिलाड़ी सूबेदार नीरज चोपड़ा जिस ढंग से सोना लाए वह बहुत महत्वपूर्ण हैं एक नेता ने जब नीरज चोपड़ा को बधाई देते हुए कहा कि देश को आज आप पर बड़ा गर्व है, एक बात आप बताएं नीरज जी कि आपने यह फेंकने की दिलेरी कहां से सीखी ?

 चैनलों पर ऐसे आडिओ सुनाये गए जिसमें नीरज बोलते हैं, सर ! मेरे प्रेरणा स्रोत आप  हैं ।ऐसे राष्ट्रभक्त खिलाड़ियों की भावनाओं को सुनकर मन गदगद हो गया । रग रग में राष्ट्रभक्ति जब समा जाती है तब नेता हो या खिलाड़ी और नरम हो जाता है ।

    राजस्थान, मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश , बिहार और बंगाल जैसे मैदानी भू-भाग में भारी जल प्लावन के बाद भी लोगों को इंतजार था कि गोल्ड मेडल लेकर हमारे खिलाड़ी कब देश वापस पहुंच रहे हैं ? राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत प्रत्येक बाढ़ पीड़ित की यही इच्छा थी कि हमारी गति तो सुधर  ही जाएगी लेकिन खिलाड़ियों का हौसला नहीं टूटना चाहिए । लगभग यही राग उन पहाड़ी क्षेत्रों से आ रहा था जहां पहाड़ दरक रहे थे, लोगों के आशियाने उजड रहे थे लेकिन उन्होंने सभी चैनल वालों से कह कर रखा था हम रहे ना रहे दिन चार लेकिन तुम करना खेल पर विचार ।

  भारत का पत्ता- पत्ता बूटा- बूटा प्रसन्न था। मंत्रमुग्ध था कि अब गांव के गिल्ली डंडा और कुश्ती वाले मैदान सज संवर जाएंगे ।

हरियाणा के मुख्यमंत्री  जिन्होंने एक ही किश्त में 6 करोड़ रुपए स्वर्ण पदक विजेता के नाम घोषित कर दिए, उनका अनुकरण करते हुए अन्य नेतागण भी खिलाड़ियों पर ध्यान देंगे यह जानते समझते हुए कि अभावग्रस्त जीवन से पसीना बहा कर जो खिलाड़ी निकलते हैं वही स्वर्ण पदक लाते हैं । ञअन्य स्थान जहां खेल मद खर्च होता है या खर्च किया जाता है वो सिर्फ चर्चा विलास के स्थान होते है । 

         चैनल हम सब के जीवन में चैन से ऐसे रच-बस गये हैं कि इनको अब अलग करके जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है ।

भीषण बाढ , मिसाइलों की तैनाती ,घाटी में अमन चैन की वापसी  कोरोना की भयावहता के बीच रैलियों,मंदिरों

और   मस्जिदों की चहल-पहल का कभी नजारा दिखता है यानि

विविध समाचारों को परोसा जाता है तो कभी  एक ही राग अलापा जाता है उनकी लीला, वे ही जानें दर्शक भले ही बैठें मन को मारे ।

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