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दर्द पटवारी का

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


        कोई भी वाद्य यंत्र तब तक किसी काम का नहीं रहता जब तक उसे बजाने वाला गुणधर्मिता का ज्ञाता ना हो । इसी प्रकार प्रशासनिक इकाई में पटवारी, किसी काम का तब तक नहीं होता जब तक कि उस से काम लेने वाला गुण धर्मिता का ज्ञाता ना हो ।

      पटवारी जो स्वयं सात सुरों से संपन्न होता है ,यह अलग बात है कि ज्ञाता के ऊपर निर्भर करता है कि उसे कौन सा राग कब उपयोग में लाना है ।  ऐसा माना जाता है कि किसी भी जिले में कलेक्टर और कमिश्नर के अलावा इस वाद्य यंत्र का लाभ अन्य कोई नहीं ले सकता ।यहां तक कि माया मोह में आकंठ डूब कर रहने वाला पटवारी तब तक माया- मोह का संभरण नहीं करता , जब तक ऊपरवाला मेहरवान ना हो । दीनहीन, लाचार, बेबस, कमजोर सा दिखने वाला पटवारी ऊपर वाले को सिर्फ अर्जी लगाता है बाकी सब अदृश्य शक्ति पर छोड़ देता है । कई बार ऐसे दृष्टांत भी आए कि जब इसी दीनहीन से दिखने वाले पटवारी के क्रियाकलापों से खिन्न होकर ग्रामीणों ने हड़ताल कर दी  लेकिन आज की तारीख में मध्य प्रदेश का पटवारी खुद हड़ताल पर हैं । 

        यह अजीबोगरीब स्थिति पल भर को बेचैन करती है  कि जो सारे समाज का राग स्वर निर्धारित करता था , आज उसी का सुर कैसे बिगड़ गया कि उसने हड़ताल पर जाने का मन बना लिया ?

             मेरे एक मित्र हैं उनका  लड़का  पटवारी है । पूरे गांव में उनकी

पूंछ-परख बढ गई ।उन्हें सब सम्मान देते हैं ।

       मैने चर्चा छेड़ते हुये पूंछा, काये दद्दी, मुन्ना के

का हाल-चाल है ,इतईं

दिखत--रहत,अबै काम से लगो है कि मुक्त हो गओ ?

         मित्र ने बताया कि मुन्ना को मन काम में नहीं लग रओ । अब का

है कि पटवारियन से काम खूब लैन लगे । ससुरी बेगार हो गई  जा चाकरी । पहले जैसी अब नौकरी नहीं रही ।

 संघ के आदेश से सबरे पटवारी कछू - कछू काम बन्द रखे हैं और कछू-कछू काम कर रये  एइसै मुन्ना

गांव में दिख रओ वरना कौनऊ पटवारी गांव वालन खै कहां दिखत ?

    मित्र बतला रहे थे कि महामारी के समय पटवारियन से काम ज्यादा ले लओ सरकार ने और प्रमोशन पर ध्यान नहीं दओ वेतन भी नहीं बढ़ाई , सो इनई मांगन के लाने वे सब हड़ताल पे चले गए ।आजकल मुसीबत को काम जो है कि कौनऊं पटवारी अपने जिला में काम नईं कर सकत  और दूसरे जिले में जाकै  काम करवो बहुत मुश्किल भरो है । 

 महंगाई की मार से पूरा पटवारी समुदाय स्वयं को परेशान बता कर कलम बंद हड़ताल पर चला गया । पूरा गांव जानता है पटवारी की माली हालत क्या है और पटवारी का कहना है कि उसे नया वेतनमान दिया जाए, इतनी वेतन में उसका गुजारा नहीं चलता । सरकार ने अगर पटवारी का पद निजी करण में अधिकृत कर लिया तो ऐसे दृष्टांत भी देखने को मिलेंगे कि लोग बोलियां लगा लगा कर पटवारी बनने को तैयार हो जाएं अभी जो सरकार से वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं सरकार को खुद वेतन देने के लिए बढ़-चढ़कर उत्साह से भाग लें ।

 एक छोटा सा किस्सा है कि एक बुढ़िया का लड़का पढ़ लिखकर कलेक्टर बन गया तो आपने गांव मां का आशीर्वाद लेने पहुंचा गांव के बाहर उसकी मां ने कभी दुनिया नहीं देखी थी । बेटे को आशीर्वाद देते हुए बोलती हैं जुग जुग जियो मेरे लाल खूब तरक्की करो और आगे चलकर पटवारी बन जाओ यानि पटवारी की ऐसी इमेज गांव वालों के सामने बनी है ।वह जिसे चाहे बना दे और जिसे चाहे बिगाड़ दे बस ! अगर पटवारी कहीं लाचार होता है तो ऐसे व्यक्ति के सामने लाचार होता है जिसके पास जमीन ही नहीं होती ।

  तब वह दांत पीसकर बोलता है,कि सरऊ दुई बीघा जमीन खरीद लै, तो हम बतई कि पटवारी का होत है ।

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