*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
सचमुच कितना हर्ष का विषय है कि वह आ गए और हम सब पर छा गए । वह अपने साथ रिमझिम बारिश भी लेकर आए । सभी की सभी प्रकार की गर्मी दूर हो गई और सब ने राहत की सांस ली । अच्छा हुआ वह आ गए ।
पालक होना बहुत जरूरी है । समाज में ऐसी मान्यताएं हैं कि बिना पालक के अनाथ माना जाता है और अनाथ की अपनी अलग समस्याएं होतीं है, उन सभी का निदान है-- पालक का होना ।
अब हम सभी के पालक हम सभी के बीच पहुंच गए ।
पालक का एक धर्म होता है कि अपने आश्रितों की अनकही समस्याओं को भी वह समझने की क्षमता रखे, इसीलिए वह जैसे ही आए अपने साथ बहुत कुछ लाए । मैं उन लोगों की बात नहीं कर रहा हूं , जो पालक के साथ उनके गृहग्राम से भीड़ बनकर आए । मैं तो उन बादलों की बात कर रहा हूं जो पालक के आने के साथ-- साथ आए और छा गए , फिर बरस गए और मौसम को ठंडा कर गए ।
हर पालक के अपने दस -- बीस ऐसे लोग होते ही हैं जिन्हें खास माना जाता है । इनकी विशेषता होती है कि वक्त गुजरने के बाद पता चलता है कि पालक का खास बताने वाले, पालक की तरफ से खास थे या अपनी तरफ से पालक को खास बनाये थे ।
आसमान पर भरे भरे बादल जैसे ही छाए बिजली कड़कड़ाने लगीं
सड़कों पर पटाखे फूटने लगे । बादलों के छाने से इधर अंधेरा छाने लगा । उधर पालक के आने से फ्लेक्स चमकने लगे ।
किसान मस्ती में झूम कर रोपा लगा रहा था और पालक, आकंठ हर्ष में डूब कर अपने लोगों को रोप रहे थे ।
अगले दिन हर कहीं से गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान हो रहा था आज के जमाने में जब हर व्यक्ति स्वयं को गुरु मानता हो तब ऐसा आदान-प्रदान सिर्फ एक औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं रह जाती । असली गुरु धुंध में खो जाता है और महागुरु आसन ग्रहण कर लेते हैं
गुरु की पदवी मास्साब से घटकर जब संविदा कर्मी और शिक्षाकर्मी में आ गई तब से उनको भी महसूस होने लगा कि वक्त बदल रहा है और बच्चे ऑनलाइन गाइडेड हो रहे हैं ।
पालक संकेत दे गए कि शिक्षा विभाग में 5 परसेंट स्थानांतरण होंगे अन्य विभागों के लिए भी राज्य सरकार ने जो नीति निर्धारित की है उसी के अनुसार अदला-बदली के आदेश होंगे । जिला स्तर पर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के लोग टकटकी लगाकर बैठे हैं , तो प्रथम और द्वितीय श्रेणी के लोग भोपाल आना जाना शुरू कर चुके हैं। अब सभी को तलाश है उन खास लोगों की , जो सीधा मुक्ति मार्ग बतलाते है इन्हीं के माध्यम से जिन्हें जाना है उनका काम होता है और जिन्हें नहीं जाना है उनका भी काम होता है । इस चमत्कार को करने वाले ही खास लोग होते हैं । ऐसे लोग यहां आ चुके है । पहले के गुरु जरूर गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बतलाते थे कब ? जब , रामराज्य था लेकिन अब ऐसे महागुरु है , जो भक्त के पास तक गोविंद को ले जाते हैं इसे लोकतंत्र कहते हैं । इस तंत्र का एक गौरव और उभर कर सामने आया है, सामान्य तौर पर सभी के निर्धारित रिश्ते होते हैं और रिश्तेदार होते हैं लेकिन लोकतंत्र की ऐसी अजीबो-गरीब विधा है कि पालक बनने के बाद रिश्तेदारों का पता चलता है और ऐसा होना अब सामान्य माना जाता है फिर भी सब हर्षित है कि लंबे अरसे के बाद हमारे बीच हमारे अपने पालक हैं ।
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