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डियर मानसून कम सुन

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार

     डियर मानसून , 


              कम सून---।

किस बात पर रुठ गए  हो ?       सभी लोग तुम्हें मना रहे हैं ।    मान भी जाओ।

 सुनो !  जल्दी  आ जाओ ।  जब से निकला जून--तभी से सबका उबल रहा है खून  ।  हैरान है, परेशान हैं, क्योंकि वह किसान हैं । हमारे पास नहीं बना  कोई कानून कि तुम्हें बांध के रखे मानसून । तुम्हारी हस्ती नहीं होती सस्ती ।

 इस बार तुम्हारे अंदाज निराले हैं । जहां नहीं पहुंचे,  वहां लोग मचल रहे हैं और जहां पहुंच गए वहां जान के लाले  हैं । 

यहां  का  हाल  अच्छा नहीं है । जो कल तक तुम्हारी रिमझिम बूंदों में छपक- छपक भींगता था-- अब वही पसीने से तरबतर पडा  है ।

   अपना यह विराटनगर तुम्हारे इंतजार में पलक पांवडे बिछाए बैठा है ।

        सरकारी आदेशों पर नगरीय क्षेत्र की साफ-सफाई  वैसे चाक-चौबंद है और सरफा जल प्रदाय डैम में पानी बहुत कम है । तुमने अगर और नखरे दिखलाएं तो सच मानो यहां पेयजल संकट बहुत गहरा जाएगा । 

यह देखकर तुम्हें भी मजा ना आएगा । 

मान जाओ मेरी मनुहार आकर बरस जाओ ताकि सभी मना लें अपना अपना त्यौहार । बंगाल की खाड़ी से उठे फिर कहां चले गए ? कुछ दिन बाद ऐसा सुराग मिला कि अरब सागर से मचलते हुए महाराष्ट्र पार कर के  मालवा  और विंध्य, महाकौशल में आ रहे हो लेकिन खबर भेज दी-- खुद नहीं आए ?

 हां ! मानसून ,

यह बतलाना तो मै भूल गया कि इस बार जब आओगे तो हमारे यहां सबके चेहरों पर माॅस्क लगे पाओगे  ।

तुम शरमा मत जाना ।

यह सारे चेहरे तुमसे अपना दु:ख दर्द छुपा रहे हैं  और  किसी  प्रकार दूसरी लहर के दंश को भुला रहे हैं ।  सबने मौत का तांडव  खुलेआम  देखा है ।  घर का मुखिया घर से चला गया, बीमारी के भारी-भरकम बिल छोड गया । लूट कि ऐसी छूट मिली कि मचल उठी

यहां जिन्दगी । ऑंखों का पानी सूख गया, जब ममता के ऑचल तले अबोला लाल सदा के लिये सो गया ।

आओ मानसून !

 खेत खाली है , बिटिया

सयानी है । गला सूखा है और उसने उम्मीदों की चादर तानी  है ।      स्कूल के मैदानों से अब किलकारियां

गायब हैं । खेलते----और  

मचलते बचपन को अज्ञात

वायरस किडनेप कर के कहीं दूर ले गया और तीसरी लहर बनकर फिर आऊंगा, ऐसी धमकी से भरा खत छोड गया ।

      काम  सबका चल रहा  है  मगर  काम  में किसी का मन नहीं लग रहा है । जनता के सामने मंदी और  मंहगाई की मार है  तो अधिकारियों के लिये तबादलों की सूची तैय्यार है । सबके गले पर रखा खंजर है आगे और खतरनाक मंजर है । कागजी बातें और बतौली  है । खैर ! 

सुनो !  मानसून ,

स्मार्ट एस पी ने स्मार्ट  टीआई  के रहते स्मार्ट थाना खोल दिया और सत्य-मेव-जयते फिर बोल दिया । 

इस धरा पर धारा वही पुरानी है लेकिन बात-व्यवहार के साथ--साथ बदली हवा--बदला पानी है ।

आकर नजर भर देख जाओ  अब मत ऊबालो और खून ।

डियर मानसून,

कम सून

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