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मेरा दिल अभी भरा नहीं

 *आवारा कलम से*


 दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार

शहडोल  l वे बड़े हैं और दिलवाले हैं । हमारे छोटे से गांव में इतनी दूर से  वे धन्यवाद देने आ गए । वैक्सीनेशन मैं हम और हमारा गांव अमेरिका और ब्रिटेन से आगे हैं ये बात हमें खुल के बतला गए  ।

             सच्ची  वह बहुत खुशमिजाज हैं । सबको खुश कर गए और उन सभी गलफुलों के गाल पर तमाचा लगा गए जो हर वक्त छोटे बच्चों की मौत और बड़े लोगों की ऑक्सीजन के बिना मौत को लेकर भला--- बुरा कहा करते थे । उनका तो साफ कहना है कि आगे की सोचना और पीछे की बात भुला देना, क्योंकि हमें आगे बढ़ना है । हम सभी उन्हें खुश मिजाज देखकर निहाल हो गए । वे डर भी रहे थे । बोल रहे थे, हम पास में आकर अर्जी नहीं लेंगे । वे डरा भी रहे थे । कह रहे थे, यह मत समझना    टीका   लग   गया   तो   कोरोना चला गया । वह भी यहीं है । आसपास,

इसीलिए अपना मुंह बंद रखना और माॅस्क लगाना । हाथ धोना और दूरी रखना । इतना याद रखना कि अभी दूसरा टीका भी है लगवाना।

          वे बहुत प्रसन्न दिख  रहे थे । कह रहे थे कि तुम गांव वालों ने हमारी आन- बान- शान बढ़ा दी । देश भर की ग्राम पंचायतें तुम्हें आदर्श मानेगीं । तुम सभी ने   कमाल  कर दिया । खुशी खुशी में वे पूंछ बैठे --बोले, तुम  सबको फ्री में राशन मिला कि नहीं मिला ?

हमारा गांव खिचड़ी, खिचड़ी भाषा बोल गया कुछ ने हाॅ कहा-- कुछ ने हाथ हिलाकर ना कह दिया---।

  ऐसा नजारा देखकर उनकी खुशी रफूचक्कर हो गई ।

पूरा मंच-- टंच हो गया ।वे गुस्से में आ गए और बोले कि-- जब गरीबों को खुश नहीं रख पा रहे तो  हम मुख्यमंत्री काहे के,  तुम मंत्री काहे के ?

 यहां के कलेक्टर कहाॅ है ? सबकी जांच करो अरे ! अगर जनता ही खुश नहीं रहेगी, तो काहे के तुम कलेक्टर , काहे के मंत्री,   काहे के हम मुख्यमंत्री  ।

घर-घर जाकर जांच करो और सब को राशन दो । पूरी जनता खुश हो गई उनकी बातें सुनकर  ।लगा कि तालियां बजाते रहें  हैं , बजाते रहें  । इतना अच्छा बोलते हैं कि वे  कि जरा सी देर में  सब से  रिश्ता  बना लेते,  गांव के जितने बच्चे हैं, उन्हें मामा ही कहते हैं । सब भीड़    लगाकर  बैठे थे  । इतनी देर तो बच्चे तब नहीं बैठते जब उनका सगा मामा आता है । वे सही मायने में नेता है । जनता की नब्ज पहचानते है । इसीलिए मंच पर एक मंत्री को भी डांट फटकार दिए सीधा बोले काहे के मंत्री झंडी लगाने के लिए मंत्री ।

हमारे गांव के लोग उन्हें पहचानते है ।कांग्रेस  में जब उन्हें सम्मान नहीं मिला तब वे भाजपा में चले गए थे । गांव वालों को लगा ऐसे ही सम्मान पाने को  वहां गये है ?  खैर ! उनकी अंतरात्मा जगी तो जगी  ।

अब शायद वे फिर से गांव आएंगे और पता करेंगे कि राशन मिला कि नहीं मिला ।

हमारे गांव के बाद  बडे नेता जी फिर बड़े अस्पताल गए । हम सब लोग उसे मेडिकल कॉलेज बोलते हैं  ।

वहां जाकर तो वे फिर खुश हो गए और बोलन लगे यह यह कॉलेज और अच्छा होगा । देश का पहला अस्पताल होगा । जहां भोपाल के लोग भी चाहेंगे कि हमें भर्ती होना है तो शहडोल के मेडिकल कॉलेज में भर्ती होना है । सारे लोग जो उन्हें बैठे सुन रहे थे , सब चना के पेड़ पे चढ़ गए । सब खुशी से झूमन लगे उनकी मीठी-- मीठी बातों से पता ही नहीं चलता कि नरक  जैसी परिस्थितियां  कब स्वर्ग  बन जातीं ?

 डॉक्टरों का दिन था,  तो "डाॅक्टर-डे" पर उन्हें दिल खोलकर बधाई दी और कहा कि भगवान का दूसरा स्वरूप कहीं देखना है तो आपमें ही दिखता है , कितने लोगों को आप ने जीवनदान दिया, आगे भी आसान दिन नहीं है और आप ही के बलबूते हम आगे की लड़ाई लड़ेंगे । आपके साथ सब खड़े होंगे ।

मेरा दिल अभी नहीं भरा मैं आपके बीच फिर आऊंगा हमारे भांजे भांजी या जो डॉक्टर बनने यहां आए हैं वह हमसे कुछ बात करना चाहते लेकिन अभी कोरोना है तो माहौल ऐसा है कि हम उनसे नहीं मिल सकते, इसीलिए हम फिर आएंगे वे खुशी-खुशी में पुलिस वालों के लिए धन्यवाद करना भूल गए  । शायद इसलिए कि फिर लौट के आना  है  और इसीलिये  तबके लिए बचाकर धन्यवाद 

रख लिया होगा ।

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