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बांधवगढ़ नेशनल पार्क में भारी अनियमितता

 बांधवगढ़ नेशनल पार्क में बिना गाइड के पर्यटक घूम रहे हैं जंगल बेरोजगार युवाओं को नहीं मिल रहा है रोजगार


खालिक अंसारी की रिपोर्ट

 उमरिया l मध्य प्रदेश के मुखिया द्वारा लागू की गई योजना बफर के सफर के तहत मध्यप्रदेश राज्य पत्र के अनुसार बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में वन निर्धारण क्षमता से  डेढ़ गुना भर्ती स्थानीय लोगों को गाइडों के रूप में प्रशिक्षण देकर किया जाना था। जिस  पर स्थानीय पार्क प्रबंधन ने सभी स्थानीय लोगों का फार्म भरवाया सभी को प्रशिक्षण दिया। किंतु केवल 8 लोगों की भर्ती पर प्रबंधन के मनसा अनुसार चयन किया गया।  जो लोग आर्थिक रूप से मजबूत है।और कुछ लोग उद्योगपति है। उपरोक्त भर्ती के बावजूद भी  अभी  150 से 200 जगह गाइड पद कार्य हेतु खाली है। उपरोक्त लोगों को प्रशिक्षण भी दिलाया जा चुका है। किंतु प्रबंधन के मुखिया के ऊपर कुछ लोगों का ऐसा दबाव है। जिससे  स्थानीय लोगों को भर्ती नहीं किया जा रहा। जिसके कारण स्थानीय लोग कोविड-19 करोना कि इस महामारी की घड़ी में घर  खेत गहना गहन रखकर अपना रोजगार पाने हेतु और अपने परिवारों का जीवका चला रहे। एक तरफ मध्य प्रदेश के मुखिया का दावा है कि मध्य प्रदेश के लोगों को कोविड-19 करो ना कॉल की इस घड़ी में जितना रोजगार दिया जा सकेगा देंगे। किंतु रोजगार नहीं मिल रहा है। जिसके कारण लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि यदि सरकार हम लोगों की नहीं सुनती है और टाइगर रिजर्व में रोजगार रहते हुए हमें अपना घर द्वार गहन रखकर अपना और अपने परिवार की जीवका चलाना पड़ेगा तो हमारा अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। और स्थानीय जनों का यह भी  कहना है कि गाइड रोजगार   पर  पूजीपतियों का कब्जा है जो बांधवगढ़ से लगे ग्राम के लोगों की भर्ती प्रबंधन के माध्यम से नहीं होने देते। क्योंकि यदि सभी लोग सम्मिलित हो जाएंगे तो पूजी पतियों की कमाई में कमी हो जाएगी  जिसे लेकर अभी कुछ विगत माह पूर्व बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से लगे क्षेत्र वासियों को पार्क प्रबंधन द्वारा गाइड कार्य के लिए प्रशिक्षण दिलाया गया। जिसमे पूंजीपति व प्रबंधन की मिलीभगत  में एक भूमिका रची गई की परीक्षा इतना कठिन कर दी जाए। कि लोग परीक्षा पास न कर पाए । जो नियम कानून में नहीं था केवल प्रशिक्षण दिलाकर रोजगार तौर पर टाइगर रिजर्व के लगे ग्रामों के लोगों को पर्यटन कार्य हेतु रखा जाना था। किंतु प्रशासन ग्रामीणों के  अधिकार को नजर अंदाज करते हुए न्याय देने के बजाय  कचरे के  टोकरी में डाल  दिया गया।

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