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प्रतिष्ठित हुआ पत्रकार

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


        समाज में एक वक्त ऐसा था जब पत्रकारों को और वकीलों को विवाह के लिए कोई अपनी लड़की देने आगे नहीं आता था ।  उसका मानना था कि पत्रकारों और वकीलों की आय का कोई स्थाई जरिया नहीं होता । कभी -- कभार यदि कहीं से कुछ मिला तो ठीक वरना फांके ।

    निबंध लिख रहे बच्चे ने जब फांके शब्द के स्थान पर फेंके शब्द लिख दिया तो टीचर ने समझाया कि

गलत मत लिखो । फेंके का अर्थ होता है,फेंकना

  जानते हो फेंकना ?

जब कोई वस्तु अपने स्थान से बल पूर्वक अन्यत्र की जाती है, उसे

फेंकना कहते है ।

  बच्चे ने कहा आप गलत पढा रहे हैं । जैसा

आपने बताया, उसे हटाना कहेंगे । पापा इसी तरह से मम्मी को हटा कर कपडे भी धोते हैं  और  खाना  भी बनाते हैं ।

   टीचर ने कुछ सीखने के अंदाज से पूंछा कि फिर   फेंकना   क्या होता है ?

 बच्चा बतलाने लगा कि

ऊंची--ऊंची , बे- - सिर पैर की बातें करने पर जब पापा कहते हैं कि फेंको मत । उसे फेंकना कहते है ।  पापा नहीं फेंकते , ऊंची--ऊंची ?

  टीचर के सवाल पर बच्चे ने बताया कि नहीं पापा नहीं फेंकते लेकिन ना ,   जब वे  टी वी देखते  हैं, तब  बीच बीच में चीखते रहते

है , फिर आ गया फेंकू ।

झल्ला कर  टीचर बोला ठीक है--ठीक है आगे लिखो ।

पत्रकार पर निबंध क्या लिख रहे ,साला मेरे ही खिलाफ एन एस ए की धारा न लिपटवा दे ।

 बच्चे ने सवालिया नजरों से जब टीचर की तरफ देखा, तब फिर प्यार भरे अंदाज से टीचर ने समझाया कि आगे और लिखो  बेटा कि  फांके  मायने होता  है ,  भूखा रह जाना । 

  लिखो !

 पत्रकारों की माली हालत बड़ी दयनीय रहती थी ,  वे  झोला और कलम लेकर घर से निकलते थे और किसानों की, गरीबों की खेतिहर मजदूरों की समस्याओं को,उनकी बीमारी को, पगार को आधार बनाकर ,हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करते थे और दीन हीन कमजोर वर्ग को उसका हक दिलाते थे । सरकार  यानि  हुकूमत ऐसे लोगों को गिरफ्तार कर लेती थी, इसीलिए समाज में भय बना रहता था और लोग शादी ब्याह के लिए अपनी लड़कियों को पत्रकारों और वकीलों के साथ  ब्याहने से कतराते थे, यानि जल्दी तैयार   नहीं  होते थे । 

     आजकल माहौल बदल गया अब किसी भी वर्ग की आमदनी निर्धारित नहीं है, जिनके पास  पैसा है , वहां भी  छापा डालकर सरकार पैसा निकाल लेती है । इसीलिए अब पत्रकारों और वकीलों की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ गई । लोग उनके साथ भी अब शादी--ब्याह   करने   लगे है । 

     मूलतः पत्रकार निडर प्रजाति का ही होता  है, लेकिन चतुर और चालाक व्यक्ति जब मनगढ़ंत ,निराधार और असत्य आरोपों में पत्रकार को घेर लेता है तब उसे उन लोगों से संबंध बनाने की जरूरत पड़ती है, जो हुकूमत के आसपास बने रहते हैं ।

    यह शाश्वत सत्य है की पत्रकारों , नेताओं और वकीलों से कभी कोई गलत काम नहीं होता है । 

   इन पर जब भी आरोप लगते हैं ,   वह  असत्य और   निराधार  ही  होते हैं । 

 शुरुआती दिनों में पत्रकारिता एक मिशन कहलाती थी । लोग उसे राष्ट्रीय चरित्र से जोड़कर अभियान समझते थे । धीरे --धीरे आत्मनिर्भरता का युग आया। संसाधन बढे और पत्रकारिता राष्ट्रीय विकास की सहभागी बन गई । 

  अब तो अधिकांश पत्रकार भी व्यवसाय के रूप में पत्रकारिता को  बतलाने लगे हैं ।

 हुकूमत भी पत्रकारों को आवास,  स्वास्थ आवागमन और बाद में पेंशन की सुविधा देने लगी है । यह लाभ मुट्ठी भर लोगों को अभी  मिल रहा है बाकी बहुसंख्यक पत्रकार आज भी अभावग्रस्त माहौल में अपने उच्च राष्ट्रीय चरित्र का निर्वहन कर रहे हैं । उनके प्रति भी हुकूमत को ध्यान देने की जरूरत है । 

     यह ऐसा समुदाय है जो अपने भविष्य को दांव पर लगाकर राष्ट्रीय भविष्य को उज्जवल बनाने में अपना जीवन समर्पित कर देता है । इस की कलम से कई सरकारें बाहर निकलती हैं और ऐसी सरकारें ना जाने कितने कलमकारों को निगल जाती हैं । एकता के अभाव में कलम क्रांति के  ये जनक  स्वान्त:सुखाय

मंत्रमुग्ध प्रवृति के पोषक होते है ।

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