*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
मैने अपने सपने में देखा कि महाभारत के दौरान सम्राट धृतराष्ट्र के दरबार में शकुनि का मायाजाल बिखरा हुआ है और चौपड़ पर युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया ।
सपने में लाइट गोल नहीं होती , इतना तो पक्का है । वरना बिजली वाले तो अपने बाप की नईं सुनते ।
मुख्यमंत्री का सम्बोधन भी चलता रहे और वे जन संवाद कर रहे हों कि आप ही हमारे भगवान हो , हम भगवान के घर में अंधेरा नहीं रहने देंगे और हमने सब अधिकारियों से साफ--साफ कह दिया कि हमारे भगवान के घर में जरा भी अंधेरा नहीं होना चाहिये ।
सामने बैठी, हमारी जनता से मैं एक सवाल करूंगा । सच -सच उत्तर देना । अरे! जोर से बोलो, सही उत्तर दोगे ना ?
तो बताओ-- अब बिजली मिल रही ना--। --तभी पूरे शामियाने कि लाइट गुल हो गई ।
अब कर लो बिजली वालों का --क्या कर सकते हो ?
ऐसे--ऐसे कारण सामने बतला देंगे कि आप उनकी घांस भी नहीं उखाड पाओगे ।
बिजली विभाग बनाने बाले तक इसकी काया--माया आज तक नहीं समझ पाये ।
हर जिले में डी ई के ऊपर एस ई तक बैठा दिये गये, मगर मजाल क्या जो व्यवस्था सुधर जाये । बिना कनेक्शन के बिल भेजने वाला और मार्जिन रीडिंग के आधार पर विशालकाय बिल भेजने वाला यही विभाग है जिसके काटे का जहर
बिना बिल जमा किये नहीं उतरता ।
खैर! छोडो, जो आदत नहीं सुधर सकती तो उसमें बचा -खुचा दिमाग काहे को लगाना । दिमाग नई लगाना ।
अपन कौन सो सपना देख रहे थे---हओ याद आ गई ।
दु:शासन जब द्रोपदी के केस पकड़कर भरे दरबार में लाया और दुर्योधन के आदेश पर चीर हरण करने लगा तब आर्तनाद करती हुई द्रोपदी ने कान्हा को पुकारा और सहायता की मांग की ।
प्रभु तत्काल द्रोपदी की आन--बान बचाने आये
बिना बुलाये भगवान भी नहीं आते ।
उन्होंने कोई सेल्फी नहीं खिंचाई प्रगट होकर कोई एहसान भी नहीं जताया अप्रत्यक्ष रूप से पीड़िता की मदद की और कर्तव्य निर्वहन के आदर्श मानदंडों को स्थापित किया । अब ऐसी स्थितियां देखने को नहीं मिलतीं । आज बदले हुए परवेश है । अब मदद करने वाले पीड़िता की मदद करने के पहले 8------10 सेल्फी खिचायेंगे, फिर मीडिया के सामने कथित आततायी के अदृश्य कुकर्मों का वर्णन करेंगें फिर संकलित वस्त्र भेंट करेंगे ।
अच्छा हुआ कि जो सपना देख रहे थे उस सपने की रील बदल गई । वरना सोते ही रहते । लोग कहते कि
जे भी नेतन की तरह सो रये ।
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