*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की सबसे मजबूत, संस्कारिक, जनहितेषी सरकार कभी झूठ नहीं बोल सकती है क्योंकि सारा विश्व इसका अनुसरण कर रहा है । अगर सरकार ने कह दिया कि कोविड-19 से देश के अंदर ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई तो यह शाश्वत सत्य है कि देश का कोई भी आदमी कोविड-19 के दौरान ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरा ।
भारी भरकम शपथ लेने के बाद संसद जैसे पवित्र मंदिर में झूठ बोलने का सवाल ही पैदा नहीं होता । बस! इतना सा गुरु मंत्र समझने वालों को अब ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत के सवाल पर राजनीति नहीं करनी चाहिए ।
जो ऐसा करते हैं समझो, वह देश का कीमती समय बर्बाद करते हैं । सरकार ने माना कि देश के अंदर कोरोना महामारी से मौतें हुई । देश में पर्याप्त दवाएं थीं, पर्याप्त व्यवस्थाएं थीं, पर्याप्त डॉक्टर थे । रिकवरी रेट बहुत शानदार था,( किसी भी टीवी चैनल पर या उसका रिकॉर्ड मंगा कर देखा जा सकता है )फिर भी अगर कुछ लोग मर गए तो यह माना जाए कि वह जीवित नहीं रहना चाहते थे । ऐसे लोगों को उनके परिजन हंसते खेलते गाजे-बाजे के साथ अस्पतालों में लेकर गए और हंसी खुशी से टाटा बाय-बाय करते हुए लौट आए । इसमें क्या राजनीति करना ? यह तो गलत बात है । यह भी हो सकता है कि कुछ शौकिया मरीजों ने हाजमोला की गोलियां खाईं होंगी और उनके रीएक्शन से सांसें अल्पविराम के बाद दीर्घकालीन अवकाश पर चलीं गईं हों । उसका लेखा-जोखा नहीं है ।पोस्ट मार्टम प्रक्रिया पूर्णत: स्थगित थी ।
किसी के पास कोई प्रमाण नहीं है कि मौत कैसे हुई ?
--तो फिर अपनों के द्वारा,अपनों के लिये निर्वाचित सरकार पर भरोसा क्यों नहीं किया जा रहा है ?
कोविड--19 के चरम पर उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र की हाइकोर्ट ने केन्द्र सरकार को नोटिस जारी कर जो सवाल ऑक्सीजन की उपलब्धता और वितरण व्यवस्था में लापरवाही पर ऊठाये थे, उनको याद रख कर फालतू का सिरदर्द नहीं लेना ।
संसद के भीतर केंद्र ने जो जवाब दिया वह निराधार थोड़े ही है । प्रत्येक राज्यों से जो रिपोर्ट भेजी गई, सरकार कह रही है कि किसी भी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख नहीं है कि ऑक्सीजन की कमी से कहीं कोई मौत हुई, तो फिर भला केंद्र सरकार अपने मन से कैसे कह दे ?
शहडोल संभाग के कुछ लोग महाराष्ट्र में रेल की पटरी पर सो रहे थे कोविड-19 के कारण रेलगाड़ियां बंद थी बिचारे पैदल लौट रहे थे रेलवे का स्टाफ छुट्टी पर होगा । लाइन का निरीक्षण स्थगित होगा । अचानक मालगाड़ी कहीं से आई और रेल की पटरी पर सो रहे सभी लोगों पर जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, अपनी रफ्तार से उनको रोंदती हुई निकल गई । अब इस पर इस समय क्या राजनीति करना ?
वह रेल की पटरी कोई सोने की जगह थोड़ी है। इसी तरह शहडोल के जिला अस्पताल में जो 24 बच्चे मर गए, वह उनकी गलती थी जो इतनी गंभीर अवस्था में लाये गये थे अब किसे सस्पेंड कर दिया जाये, या किसे बर्खास्त कर दिया जाये और क्यों बर्खास्त किया जाये क्या किसी के पास कोई प्रमाण है ? अगर है तो पेश करें ।जांच कराई जाएगी ।मेडिकल कॉलेज में डीन कोई अथॉरिटी थोड़ी है , जिसका रिकॉर्ड मीडिया में है उसने एक्सेप्ट किया कि हां ! ऑक्सीजन की कमी से लोग मर गए वह है कौन ? इतनी बड़ी सरकार के सामने उस बोने से अधिकारी की बात कितनी बजनदार होगी?
केंद्र के पास तो राज्य की रिपोर्ट है कि शहडोल में कोई भी मरीज ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरा । इतनी सी सरल बात लोगों के जेहन में नहीं उतरती और सरकार को दोष देते हैं । यह पूंछना भी गैर लाजमी है कि जब पर्याप्त ऑक्सीजन देश में थी, व्यवस्था परिपूर्ण थी, तो नये ऑक्सीजन प्लांट क्यों खोले जा रहे हैं ? इसलिए खोले जा रहे हैं ताकि आगे से मरीजों की यदि लाखों-करोड़ों में भी संख्या जाती है तो मरीज ठीक करने की हमारी आत्मनिर्भरता कायम रहे ।
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