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अब क्या दरकार

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


     शहडोल  l विश्व रिकार्ड बनाने के बाद भला मध्य प्रदेश सरकार को अब और कौन सा रिकॉर्ड बनवाने की दरकार है , जिसके लिए वह हाथ-- पैर छट- पटाए  ?

वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड वालों को चाहिए कि वह मध्य प्रदेश के लिए एक परिशिष्ट निकाल दें , क्योंकि यह रिकॉर्ड बनाने का सिलसिला पिछले 15 सालों से चलता आ रहा है, और आगे भी लंबे समय तक यह सिलसिला चलता रहेगा । लगातार पांच साल तक  गेहूं उपार्जन में कृषि कर्मण पुरस्कार पाने वाली मध्य प्रदेश सरकार ही है । एक करोड़   वृक्षारोपण  एक दिन में करने वाली राज्य सरकार मध्य प्रदेश की सरकार ही है । तेंदूपत्ता का बोनस, वनवासियों को चप्पल पहनाने का     अभियान हो, बालिका शिक्षा अभियान हो, मध्य प्रदेश की कोई बराबरी नहीं कर सकता । इसके लिए मामा सरकार बधाई की पात्र है ।

पंजाब सरकार ने गेहूं उपार्जन में जो नाम कमाया उसके पीछे भाखड़ा नंगल बांध की नहरों का जाल था लेकिन मध्यप्रदेश में बिना सिंचित रकवा बढ़ाएं और सूखा घोषित होने के बावजूद, गेहूं उपार्जन में जो नाम कमाया वह बे- मिसाल है  ।होना तो यह चाहिए की वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक के ऊपर मध्य प्रदेश का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखना चाहिए  ।

एक दिवसीय वृक्षारोपण के बाद कितने पौधे मर गए, इसका रिकॉर्ड कोई दर्ज नहीं करता वरना मध्य प्रदेश अव्वल स्थान पर होता । इसी तरह कोई वैक्सीन महा अभियान के दूसरे दिन कितने लोग बिना वैक्सीन लगवाए लौट गए इसका भी कोई रिकॉर्ड रखता तो मध्य प्रदेश का नाम पहले स्थान पर होता लेकिन नकारात्मक रिकॉर्ड रखने की परंपरा बेमानी है ।उस पर ध्यान भी नहीं देना चाहिए । कई देश ऐसे हैं जहां कुल अनाज जितना पैदा होता होगा उतना अनाज तो हमारे यहां खुले मैदान में रखे रखे अंकुरित हो जाता है लेकिन ऐसी छोटी मोटी बातों पर ना हम ध्यान देते हैं और ना कभी रिकॉर्ड बनाने की सोचते हैं  । अब देखिए कई देश ऐसे होंगे जिनका कुल वार्षिक बजट जितना बनता होगा इतना बजट तो हमारे देश में दुर्घटनाओं की मुआवजा      राशि  देने   में बट जाता है ।अभी हालिया हादसा है, जब कोरोना से देश में इतने लोग मर गए कि केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में जवाब लगाना पड़ा की बीमारी से मारे गए लोगों के परिवारों को हम कोई राहत राशि नहीं दे सकते क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में यदि हमने राहत राशि दी तो सरकार की डुग्गी पिट जाएगी । कोई भी ऐसा सोच सकता है कि जिस देश में माल्या, नीरव, चोकसी  22 लाख 585 हजार करोड़ से ज्यादा की रकम लेकर विदेश भाग गए और सरकार उन्हें वापस लाने में सिर्फ प्रयासरत हो वह देश महामारी से मरने वालों के परिवारजनों को घोषणा के बाद भी राहत राशि नहीं दे सकती ? सभी सोच रहे थे कि रिजर्व बैंक से जो आपातकालीन फंड सरकार ने लिया है वह मुआवजा बांटने के लिए होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ । फिर लोगों ने सोचा कि जीएसटी से जो 7 गुना ज्यादा पैसा सरकार के पास आया है

 शायद उससे मुआवजा राशि बाटेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ , फिर लोगों ने सोचा की पेट्रोल डीजल की आंख मूंद बढ़ती कीमतों से जो पैसा मिल रहा है शायद वह मुआवजा राशि में बटेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ । लोगों ने फिर सोचा कि देश में शराब के ठेके और रेत के ठेकों से जो आमदनी हो रही है शायद उसका पैसा मुआवजा राशि में बटेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ । फिर लोगों ने सोचा कि एयर इंडिया, एलआईसी, आकाशवाणी, बीएसएनएल और रेलवे को बेचने के बाद जो पैसा मिलेगा उसे सरकार मुआवजा राशि के तौर पर बांटेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ । सरकार ने बताया कि उसके पास पैसे की कमी राज्य सरकारों ने बताया कि वह कर्जे पर चल रही है एक दिन वह इतिहास में दर्ज है जब देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री में भयानक सूखे से जूझ रहे देश पर पड़ोसी देश में हमला किया और उसके तत्काल बाद शरणार्थियों की भीड़ लगी तब उन्होंने पांच पैसे का डाक टिकट जारी किया जिसे शरणार्थी टिकट के रूप में जाना पहचाना गया और लोगों ने खुशी-खुशी टिकट खरीद कर देश के आर्थिक संकट में अपना योगदान दिया यह बात मौजूदा सरकार को भी मालूम है की देशवासियों से यदि आवाहन किया जाए तो दोनों हाथ खोल कर लोग अपना योगदान देते चाहे मंदिर निर्माण के लिए हो या सरदार सरोवर बांध के पास सरदार वल्लभ भाई पटेल की स्टेचू लगाने के लिए हो लोगों ने अपना सहयोग दिया काश सरकार कह देती कि हमारे पास पैसे नहीं है लेकिन कोरोना महामारी से जो परिवार आहत उनकी मदद के लिए सहयोग दें तो कसम से देशवासी साबित कर देते कि जितना पैसा भगोड़े लेकर नहीं भागे उससे ज्यादा राशि सरकार के पास पहुंचा दी जाती लेकिन सरकार ने सुप्रीम शरणम गच्छामि की नीति अपनाई आज कई परिवार मदद की आस में आंखें नम किए बैठे हैं

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