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अघोषित बिजली कटौती से ग्रामीण क्षेत्रों में त्राहिमाम त्राहिमाम

दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


 शहडोल । शहडोल जिले की बात न लेकर अगर पूरे संभाग की बात की जाए तो इन दिनों जब मानसून दस्तक दे चुका तब विद्युत आपूर्ति की स्थिति न सिर्फ दयनीय है बल्कि चिंतनीय है। खासकर ग्रामीण इलाकों में 6 से 8 घंटे की कटौती  हो रही है । 

       कहीं-  कहीं तो 12--- 12 घंटे की कटौती ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि उपभोक्ताओं से मनमाना बिजली बिल वसूलने वाली यह विद्युत कंपनी गर्मी के 4 माह तक इसलिए बिजली कटौती करती है कि उसे बरसात के पहले मेंटेनेंस करना है और जब बरसात आती है तो यह 12  घन्टों से आगे अनंत समय के लिए विद्युत कटौती शुरू कर देती है  ।  ऐसी स्थिति में  ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे-छोटे व्यवसायी और किसान जिनका जीवन बिजली उपकरणों  पर आश्रित है, बुरी तरह से तो प्रभावित होता ही है साथ ही रोजी-रोटी की समस्या भी खड़ी हो जाती है  ।  प्रायः देखा गया है कि बरसात के शुरुआती दौर में जहरीले कीड़ों का प्रकोप होता है और ऐसा प्रकोप तीनों जिलों में लगभग लगभग सामने आने लगा है  । उमरिया जिले में तो सर्पदंश से पीड़ित एक की मौत हो चुकी है । इसकी मौत की जवाब देही क्यों ना विद्युत कंपनी पर डाली जाये ? आश्चर्य इस बात का है कि विद्युत कंपनी के पास पर्याप्त लाइन मैन नहीं है और अन्य स्टाफ भी नहीं है फिर भी एक पक्षीय मार्जिन मनी के नाम पर विद्युत बिल भारी भरकम रकम के साथ उपभोक्ताओं को भेज रही , इसकी वसूली पूरी तरह तालिबानी अंदाज में होती है और जहां तक शिकायत सुनवाई की बात है सारे अधिकारी ---  कर्मचारी हैंडलेस हो जाते हैं । यहां तक कि अदालत  भी आम आदमी के पक्ष में आंख तरेर कर बोलती है कि पहले आप बिजली बिल जमा कर दीजिए । बाद में आप की सुनवाई होगी  ।  यानी जो फतवा इस कंपनी ने जारी कर दिया उसे तो मानना ही मानना है , चाहे आपका व्यापार बंद हो जाए या जीवन बंद हो जाए । लोकतांत्रिक इस देश में ऐसी अमर्यादित और निकम्मी कंपनी ना तो अपने नियमों में सुधार ला रही हैं और ना ही आम आदमी के हित में सोच रही हैं ।

      सरकारें पूरी तरह से मुंह फेर कर बैठी हैं । कई यूनिटों में जिनकी स्थापना 500 मेगावाट और 300 मेगावाट विद्युत पैदा करने की शक्ति बताकर कि गई थी वे आज सभी विद्युत यूनिटें 100 से लेकर 200 मेगावाट तक विद्युत उत्पादन कर रही हैं ।  ऐसे नाकामयाब इंजीनियरों और कंपनी के प्रबंधकों पर क्यों नहीं दंडात्मक कार्यवाही की जाती है,जो पर्याप्त सुविधाओं के बावजूद भी निर्धारित क्षमता की विद्युत पैदा नहीं कर पाते ?

 सरकार अपनी लोकप्रियता के लिए नि:शुल्क विद्युत प्रदाय योजनाओं का शंखनाद करती है और दूसरी तरफ इन सभी का खर्चा उन उपभोक्ताओं के ऊपर लाद देती है जो ईमानदारी से विद्युत शुल्क जमा करते आ रहे हैं ,एक सर्वेक्षण के अनुसार ब्यौहारी और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में पिछले एक हफ्ते से विद्युत प्रदाय में अवरोध पैदा हो रहा है और 8 से लेकर के 12 घंटे तक ग्रामीणों को बिजली नहीं मिल रही है । 

 समाजसेवी विनोद ताम्रकार ने और  क्रेशर संचालक राजेंद्र गुप्ता ने अलग-अलग सवालों पर दूरभाष पर बताया कि बिजली के ना होने से जीवन दूभर हो चुका है । जयसिंहनगर, बनसुकली महुआ टोला, रिमार, अमझोर, दरोड़ी के बारे       में समाजसेवी चंद्रमा प्रसाद तिवारी एवं राम सुशील तिवारी ने बताया कि हालात    बहुत    खराब है । 

गोहपारू जनपद के  मोहम्मद रज्जाक,  प्रेम धारी सिंह  या जैतपुर जनपद से समाज सेवी सुश्री  उमा धुर्वे,एवं बलजीत सिंह खनूजा

,ने बताया कि यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में भी बिजली का रोना मचा हुआ है । सोहागपुर जनपद के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में जो संभागीय मुख्यालय से लगे हुए हैं,  बिजली की आवाजाही और अघोषित कटौती से ग्रामीणजन त्राहिमाम---- त्राहिमाम कर रहे है ।

बुढार  से लगे हुए अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ जनपद में मानो लोकतंत्र बचा ही नहीं, सरकार देखने को नहीं मिलती , मनमाने काम चल रहे हैं और पश्चिमी पुष्पराजगढ़ का भाग आज भी 18वीं शताब्दी का जीवन यापन कर रहा है ।समाजसेवी नर्मदा सिंह ने बताया कि खासकर बेनीबारी कोढ़ार, दोना कातर, तरंग जैसे ग्रामीण क्षेत्र बहुत बुरी स्थिति में है । अनूपपुर जिले के कालरी क्षेत्र को छोड़कर समीपी ग्रामीण क्षेत्रों का हाल - बेहाल है कमोबेश यही स्थिति झींकबिजुरी, केशवाही, कोठी, निगमानी की बनी हुई है । 

     उमरिया जिले की बात करें तो वहां से प्रखर पत्रकार मेंहदी हसन ने बताया किहालात बहुत खराब हैं वहां भी यही तस्वीर बनकर  उभरती है ।अखडार से लेकर के नौरोजाबाद के बीच के तमाम ग्रामों में बिजली की कटौती है ,जबकि यहां लगा हुआ मगठार विद्युत प्लांट है ।   दिया तले अंधेरा वाली स्थिति यहां है । शहडोल संभाग में तीन विद्युत प्लांट हैं  लेकिन बिजली का इस कदर से रोना मचा हुआ है कि जैसे हम प्राचीन युग में जीवन यापन कर रहे हों !

       माना कि विद्युत उत्पादन का सारा भाग एनटीपीसी में जाता है लेकिन जहां इकाइयां स्थापित होती हैं शुरुआती दस्तावेजों में वहां के सामाजिक कल्याण की कसमें खाई जाती है, बाद में भुला दी जाती हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत प्लांट बैठा करके यह कंपनियां भारी भरकम करों  कि चोरी कर रही हैं लेकिन ग्रामीण और शहरी उपभोक्ता आंख बंद करके मूकदर्शक बना है मेरा यह कतई इरादा नहीं है कि ऐसी चोरियों के खिलाफ कड़े से कड़े कदम उठाने चाहिए बल्कि मेरा इरादा तो यह है कि दिया तले अंधेरा भी नहीं होना चाहिए। बिजली प्रबंधन को लेकर संभागीय स्तर पर एक उद्देश्यपरक बैठक होनी चाहिए और इस विद्युत प्रदाय कंपनी से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि उसने ग्रीष्मकालीन दिनों में क्या प्रबंधन किया उसे पहले नहीं पता था कि विद्युत पोल या विद्युत तार के पास यह पेड़ या पेड़ की डाली गिर सकती है ?लोग , कटिया डालकर लाइन फेल कर सकते हैं या उसे यह नहीं पता था कि उसके जर्जर ट्रांसफार्मर पानी पड़ने के बाद उड़ सकते हैं ? अगर इनकी जानकारियां थी तो उनकी वैकल्पिक व्यवस्था    उसने  क्या की  ? सिर्फ बिल वसूल करना ही कंपनी का काम नहीं है अपने उपभोक्ता को नियमित सुविधाएं उपलब्ध कराना भी उसका दायित्व बनता है ।

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