*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
शहडोल l बाढ़ नियंत्रण एजेंसियां जैसे ही अखबारी सक्रियता के मोड पर आईं, वैसे ही मानसून मेडिकल लीव पर चला गया ।
किसान धान की बोनी में लगा है । उसकी तो पुश्तैनी आदत है, जुआ खेलने की । हर साल खेत में बीज फेंक कर दांव लगाता है , फिर भगवान भरोसे गिन गिन कर दिन काटता है कि उसे इस बार फसल भी काटने का मौका मिल जाए।
गरीब आदमी खुशहाल है । सस्ता अनाज सरकार उसे बांट रही है । घोषणाओं और योजनाओं के अनुसार हर गरीब के घर में तीन -तीन महीने का अनाज भंडार हो चुका होगा, क्योंकि प्रशासन पर ऐसा काम करने का शुरू से बहुत प्रेशर बना था । केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने काफी प्रेशर बनाया था । सरकारें जानती हैं कि जब तक प्रेशर न बनाया जाए, तब तक लक्ष्य परक, काम पूरे नहीं होते ।
उदाहरण के तौर पर प्रेशर का ही कमाल था कि एक दिन में वैक्सीनेशन का काम ऐसा हुआ कि गिनीज बुक की सुर्खियां बन गया । दूसरे ही दिन प्रेशर हल्का होने से भारी तादाद में लोग वैक्सीन बिना लगवाए सेंटरों से लौटने लगे । कई सेंटर तो बंद पड़े मिले । बाद में पता चला कि प्रेशर के कारण वह एक दिन के लिए ही खोले गए थे ।
तीसरी लहर आने का खतरा सामने है और महंगाई पीछे से मार रही है । हम सभी प्रगतिवादी लोग आगे देखते हैं । यही कारण है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने तीसरी लहर से दो-दो हाथ करने की पूरी तैयारी कर ली है और अपनी कमर भी कस ली है । बस! आम जनता की बारी है कि वह संक्रामक होने को तैयार हो जाए ताकि सरकारें अपना लोक हितकारी फर्ज पहले से बेहतर निभा सकें ।
जनता को संक्रामक होने की पूरी आजादी मिल चुकी है । बाजार, सिनेमा, क्लब, चौपाटी, पार्क ,हाट-- बाजार सब खुल गए । यहां तक कि शराब की दुकानें भी खुल गईं । अब पुलिस भी नरम पड़ गई ।मास्क लगाना, हाथ धोना, आपस में दूरी बनाना, यह सब काम स्वेच्छा पर निर्भर है ।अब यह ऐसा बाध्यकारी काम नहीं है कि हर किसी की तशरीफ पर डंडे बरसाए जाएं ।
ऐसे हरे-भरे खुशनुमा वातावरण का सब कोई आनंद ले रहा है । बंधन टूट गए । लोग बंधे सांड की तरह छूट गए ।बाजार और गलियां गुलजार हैं-- सब तरफ यही समाचार हैं ।
हम भारत के लोग वोट देकर जिस सरकार को चुनते हैं फिर मुसीबत खड़ी करके उसी सरकार की परीक्षा लेते हैं ।
तीसरी लहर लाने की जिम्मेदारी वैसे अब जनता की है । इस काम को पहली और दूसरी बार सरकारें पूरा कर चुकी हैं । जनता ने उन्हें बहुत कोसा और कहा कि बिना बताए लाॅक डाउन करके सरकार ने प्रवासी मजदूरों को मार डाला । दूसरी लहर में राज्यों को कोसा कि उसने बिना ऑक्सीजन के लोगों को मार डाला । इस बार दोनों सरकारें अलर्ट हैं । केंद्र सरकार लॉकडाउन नहीं करेगी, अब यह काम राज्य सरकारों का है । राज्य सरकारों ने ऑक्सीजन की नब्ज पकड़ ली है कि कहां से, कैसे, कितनी डिमांड पूरी करनी है ।
रात्रिकालीन कर्फ्यू लागू रहने से स्पष्ट हो गया कि हम भारत के लोग दिन से ज्यादा रात में झुंड के झुंड बनाकर घूमते थे इसीलिए रात का कर्फ्यू बहुत जरूरी था । इक्का-दुक्का लोग रात को भी घूम सकते हैं और घूम ही रहे हैं । इस बात के सबूत अखबारों से मिलते हैं कि फलां फलां वार्ड में ताले टूट गए चोरों ने हाथ साफ किया अब चोर यदि झुंड बनाकर जाते तो गश्ती पुलिस उन्हें कर्फ्यू का उल्लंघन करने के जुर्म में धर दबोचती । इक्का-दुक्का घूम रहे लोगों पर वह कौन से कानून को तोड़ने का अपराध कायम करे ।
इधर अस्पतालों में जब से कोरोनावायरस हुई है तभी से हम भारतीयों की सभी पुरानी बीमारियां गूंजती थान देती लौटाई मरीज एक दूसरे से मिलने जुड़ने लगे हालचाल पूंछने लगे । *मरे कोरोना दहिजार* । सबसे अलग-थलग कर देत रहा है । अपने भी पराए हो जाते थे ।
अब देखते हैं कि अगले शादी-ब्याह के सीजन में तीसरी लहर क्या नजारे दिखाती है ? इतना तो पक्का है कि कोरोना नहीं आएगा ।
हां ! उसका दूर का कोई रिश्तेदार डेल्टा फेल्टा आ जाए । शायद उसको ऑक्सीजन की इतनी जरूरत ना पड़े जितनी कोरोना को पडती थी, फिर डर किस बात का सरकार तो तैयार है ना ?
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