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संकट अभी टला नहीं है

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


शहडोल l सुना है राम राज्य में ऐसी व्यवस्था थी कि लोगों के घरों में दरवाजे नहीं होते थे इसके बारे में और प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा बतलाया जाता है कि सभी का एक दूसरे पर गजब का विश्वास था इसलिए दरवाजे और दरवाजों पर ताले लगाने की जरूरत महसूस नहीं होती थी बाद में विश्वास का शायद क्षरण हुआ होगा तो लोग मकानों में दरवाजे बनाने लगे और दरवाजों में ताला लगाने लगे जिनका विश्वास राम राज्य में था वह ताले तोड़कर भीतर आने जाने में कोई लिहाज नहीं रखते थे ना जाने कुछ दुर्गुण आ गए कि लोग ताला टूटने की शिकायतें थानों में दर्ज कराने लगे कालखंड बदलने से व्यवस्थाएं भी बदलती हैं वैसे

     बिना दरवाजे का घर अत्यधिक आरामदायक होता है चाहे जब भीतर  जाओ और जब चाहो बाहर चले जाओ, घर का कोई भी सदस्य दूसरे सदस्य से नाराज होने पर कम से कम गेट आउट तो नहीं बोल सकता , और रूठ कर जाने वाला तय नहीं कर पाता कि उसे कहां तक जाना है एक अलग सुख की अनुभूति होती है । कोविड-19 की बीमारी ने पूरे देश में राज्यवार लॉकडाउन और अनलॉक की परेड करा दी । इसके पूर्व  से कई शहरों ने अपने यहां सीमा पर गेट बनवा कर रखे हैं, जिनसे एहसास होता है कि हम इस शहर के भीतर आ गए । गेट पर सामने लिखा होता है की सीमा क्षेत्र में  आपका हार्दिक अभिनंदन है , और  इसी के  पीछे लिखा  होता  है  कि  पुनः पधारिएगा ।

यह अलग बात है कि गेट पर लिखी --इस इबारत को छोड़कर , शेष कोई दूसरा और ऐसा नहीं मिलेगा जो आपका हाल-चाल पूछे । इधर कोविड-19 जैसी महामारी के कारण हर शहर की सीमा पर पुलिस की निगरानी समितियां बैठा दी गई जो आने जाने वालों का पूरा ध्यान रखती थी । हालचाल पूछती थी । तब इस बात का एहसास होता था कि इस नगर का कोई धनी धोरी है । महामारी की बात चली जो अभी टली नहीं है, रोग तो अभी है , लेकिन लॉकडाउन मैं ढील देकर सभी को राहत दी गई है और इसी राहत में आफत छुपी हुई है । 

     अनलॉक की खुशियां जो मना रहे हैं,, उन्हें शायद एहसास नहीं के पास खड़ा व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव हो सकता है ।

   इसकी सावधानी बरतना, आपस में दूरी बनाना निहायत जरूरी है ।  

           यह कहने और समझाने के लिए कोई दूसरा सामने नहीं आएगा क्योंकि मदद करना और राहत देना हल्का-फुल्का काम नहीं है, वैसे देखा जाए तो   इस कोरोना बीमारी के दौरान कई हाथ मदद के लिए आगे आए जिन्हें देखकर लगा कि इस भीषण कलयुग में भी मानवता जीवित है। एक तो देखा जाए तो यह रोग नया नया था जिसे हुआ,  पहली बार हुआ जिसने इलाज किया पहली बार किया और जिसने संस्कार किया उसने भी पहली बार किया और जिस ने मदद की पहली बार की महामारी के भीषण दौर में अगर बारीकी से देखा जाए तो महादानी राजा कर्ण--- राजा बाली के देश में अब कई तरह के उद्योगपति दानदाता के रूप में आगे आए है। इनसे सभी को अपेक्षाएं थी, जहां इनका दान नहीं पहुंच पाया वहां कई समाजसेवी संस्थाएं आगे आईं । जहां--जहां तक समाज सेवी संस्थाएं पहुंच सकती थी उन्होंने अपनी सेवाएं दी और जहां उनकी सेवाएं नहीं पहुंच सकी, वहां कई प्रकार के छुटभैया दानदाता भी दौड़ कर सामने आए कई बिचारे तो ऐसे समाजसेवी थे जिनकी आप कल्पना नहीं कर सकते । उन्हीं में से एक भले समाज सेवक से जब मैंने पूछा कि भैया आप मदद कर रहे हैं जबकि मैं आपको जानता हूं आपको स्वयं मदद की जरूरत है । तो हंसते हुए उसने कहा भाई साहब 10 लोगों से मैने मदद ली और उसी मदद को अगर मैंने 5 लोगों के पास पहुंचा दिया तो मेरा क्या गया और इसी बहाने मेरे अपनों की भी मदद हो गई ।  मैंने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा बहुत खूब आगे चलकर केयर फंड बना सकते हो ।  ऐसा हुनर कहां से सीखा कम से कम सहायता की मशाल ना सही तुमने मोमबत्ती तो जला ही दी रोशनी आनी चाहिए कहीं से भी हो । 

      समाजसेवी मुस्कान बिखेरते हुए बोला भाई साहब जो गैर राजनैतिक समाजसेवी संस्थाएं होती है उनकी वित्तीय व्यवस्था  भी टैक्स बचाकर हो जाती हैं । जो सरकारी संस्थाएं रहती हैं वह चालान ,  जुर्माना और दंड विधान राशि से अपना केयर फंड बना लेती हैं  । मैं अदना सा समाज सेवक चार बड़े लोगों के सामने हाथ फैला कर उनकी मदद कर सकता हूं जो शर्म और सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण परेशानियां तो उठा लेते हैं लेकिन अपनी तकलीफों को शेयर नहीं कर पाते । हम जैसे कार्यकर्ता वहां तक पहुंच बनाकर अपना अकिंचन योगदान दे देते है । यह बात सत्य है कि महामारी ने एक संकल्प से सभी को बांध दिया था कि हमें एक दूसरे की मदद करते रहना चाहिए हौसला बना के रखना चाहिए ।  शायद यही एक कारण था कि हम सभी ने आज राहत की सांस ली है फिर भी सावधान रहने की जरूरत है  ।

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