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हल्के से ना लें बांधवगढ़ अग्निकांड को

 *आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार


शहडोल l संभाग मैं प्राकृतिक रूप से प्रदत्त अकूत दौलत को हम सभी राष्ट्रीय बांधवगढ़ उद्यान के नाम से जानते हैं । ईश्वर का अनुपम उपहार है, जो इस क्षेत्र के लोगों को मिला है। इस को सहेजना संभालना और सुरक्षित रखना हम सभी का दायित्व है ।

       बांधवगढ़ नेशनल पार्क के अलावा अन्य पार्को में इतना घना जंगल और विविधता के पौधे तथा वन्यजीवों की चहल-पहल देखने को नहीं मिलती , यही कारण है कि यह सभी बातें बांधवगढ़ को अन्य सभी पार्को से सर्वोपरि बनाती हैं ।

    पिछले हफ्ते इस बांधव


गढ़ के तीन सेक्टरों मगध, ताला और खितौली में भीषण आग लगने से पार्क को बड़ा नुकसान हुआ ।आग पर काबू पाने में 48 घंटे लगे। अनगिनत वन्य जीव कॉल कवलित हो गए। कई प्रजातियों के पौधे जलकर राख हो गए, जिन्हें पनपने में बरसो लगेंगे । इसी बीच 2 से 3 अप्रैल के दौरान मध्य प्रदेश के वन मंत्री कुंवर विजय शाह का आगमन हुआ । उन्होंने भी जंगल में हुई क्षति का नजारा देखा, फिर अधिकारियों से चर्चा की वन मंत्री की बैठक में जो निष्कर्ष निकले उनमें एक बिंदु है कि राष्ट्रीय पार्क के दायरे में दस वनग्राम है, इन सभी को उचित स्थान देखकर पुनर्वास किया जाएगा ताकि महुआ बीनने या पालतू पशुओं को चराने और वनोपज संग्रहण में ग्रामीणों द्वारा आग ना लगाई जा सके।

 यह कदम सर्वथा उचित है परंतु एक बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वनोपज पर आधारित जीवन यापन करने वाले आदिवासियों और अन्य कमजोर वर्ग के लोगों को जीवको- पार्जन का पर्याप्त साधन मिले। ऐसा ना हो कि वनोपज पर आधारित जीवन यापन करने वाली प्रजातियां विलुप्त हो जाएं । 

    वन मंत्री की बैठक में दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु यही था कि इतने बड़े नेशनल पार्क में फायर फाइटर का अभाव है उसकी तत्काल व्यवस्था की जाए । तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु निकला कि नेशनल पार्क में बाघों की संख्या ज्यादा होने के कारण बाघों का आपसी संघर्ष यदा-कदा सामने आता है जिस में बाघों की मौत होती है इसलिए कुछ बाघों को अन्य पार्को में शिफ्ट किया जाए । चौथे और महत्वपूर्ण बिंदु में यह निर्णय लिया गया कि पूरे पार्क की निगरानी हेतु ड्रोन का सहारा लिया जाए तथा चौकीदार और वीट गार्डों की रात्रि कालीन गश्ती बढ़ाई जाए ,आवश्यकता पड़ने पर चौकीदारों की भर्ती की जाए ।

 मेरा अपना मानना है कि इतने बड़े नेशनल पार्क में जहां प्राकृतिक जल स्रोत ग्रीष्म ऋतु में सूख जाते हैं उन्हें या तो जीवित किया जाए या जीवित करने की व्यवस्था की जाए अथवा लिफ्ट इरिगेशन अथवा पानी की टंकियां बनाकर ऐसे फाउंटेन लगाए जाएं जो पर्यटको का भी ध्यान आकर्षित करें तथा वन्य जीवो को पेयजल भी उपलब्ध कराएं साथ ही प्रकृति को भी मनोरम  बनाने में सहभागिता निभाएं ।

 जल, जंगल और जमीन मनुष्य के जीवन के लिए नितांत आवश्यक है। अतः इस पार्क के अग्निकांड को कतई हल्के में न लिया जाए बल्कि बैठक में लिए गए सभी निर्णयों के ऊपर तत्काल अमल में लाने के गंभीर प्रयास किए जाएं।

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