*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
शहडोल l
इसे एक संयोग माना जाए की 8 अप्रैल की शाम को 6:00 बजे प्रशासन ने तेवर बदले इसी के साथ---साथ मौसम ने भी तेवर बदल लिए । इधर लॉकडाउन हुआ, उधर पानी गिरने लगा । इधर पुलिस के सायरन बजे ,उधर आसमानी बिजली कड़-- कड़ाने लगी। मैं कभी जमीन को देखता तो कभी आसमान को देखता और सोचता रहा भगवान भी जब मुसीबत देता है तो छप्पर फाड़ के देता है । कोरोना कर्फ्यू ने बाजार बंद करा दिए और जो कसर बची थी वह मौसम के तेवर की भेंट चढ गयी। किसान का गेहूं किसान को ही चिढ़ाने लगा । महुआ फूल पर आस लगाए बैठे ग्रामीण और बनवासी उदास हो गए । आम के बौर ठीक से बौराये भी नहीं थे कि झर कर नीचे आ गए ।
पुरखों की कहावतें जरा भी अर्थहीन नहीं है उनमें बड़ा रहस्य है ।जैसे ठाडी खेती गाभिन गाय, तब जानो,जब मुंह मा जाए ।
इधर हालात बेकाबू हो रहे है, कोविड-19 का संक्रमण बढ़ता जा रहा है। ऐसी हालत मेंसभी को गंभीरता बरतना निहायत जरूरी है ।
प्रशासन भी अपील कर रहा , शासन भी अपील कर रहा है कि आपस में दूरी बनाए, मास्क लगाएं और हाथ साफ करे । आपदा को अवसर में बदल दें । इस मूलमंत्र ने स्पष्ट कर दिया कि जान है तो जहान है। अब ऐसे मौके पर भी लोग हंसी मजाक करने लगते हैं जो नहीं करना चाहिए । लॉकडाउन शहरी क्षेत्र में इस बात के लिए चालू है कि लोग आपस में दूरियां बनाए रहे । इसके लिए रोको और टोको अभियान भी चलाया गया है।
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