*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
शहडोल lदादा का देश कहो या देश का दादा कहो उल्टा सीधा जैसा बोलो लेकिन अर्थ एक निकलता है कि वह देश के दादा है।
इसलिए दादा जी से आग्रह है कि अगर पश्चिम बंगाल के चुनाव से खाली हो गए हो तो अपने कुनबे के साथ वापस दिल्ली लौट आए और एहसास कराएं कि वो एक राज्य के नहीं पूरे देश के दादा है ।
इसमें कोई शक नहीं यह देश आपके इशारों पर चल रहा है । अगर आज आप कह दे कि हर व्यक्ति छत पर खड़े होकर नाचे और जो नाचेगा उसका कोरोनावायरस कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा ।
सच मानो
सेलिब्रिटी से लेकर आम आदमी तक नाचते हुए नजर आएगा ।
यानी
अब आपकी बातों पर देश नाचने को बिल्कुल तैयार है ।
मीडिया का वह दौर कुछ और था जब वीभत्स सीन दिखाना सार्वजनिक रूप से प्रतिबंधित था लेकिन आप बंगाल चुनाव में क्या व्यस्त हुए यहां हर चैनल श्मशान में जलती चिताओं को दिखाने लगा । घर में बच्चे डरने लगे और डर के कारण उन्हें बुखार आने लगा। समाज में स्त्रियों का श्मशान तक जाना उचित नहीं समझा जा रहा था लेकिन चैनलों के माध्यम से घर-घर में शमशान की तस्वीरें उन्हें परेशान करने लगी उनसे खाना तक नहीं खाया गया मां दुर्गा की उपासना के इस दौर में इन चैनलों ने यमदूत का ब्रांड एंबेसडर बन कर जो उत्पात मचाया इतना हाहाकार तो कोरोना ने भी नहीं मचाया ।
सरकारी रिपोर्टों से पता चलता है की हजार संक्रामक होने पर उनमें से 98% मरीज ठीक होकर लौट रहे हैं । ऐसी रिपोर्टों का और ठीक होकर लौटने वाले मरीजों का इन चैनलों में कोई स्थान नहीं है । यानी दो परसेंट मौतों को इन चैनलों ने 24 घंटे का अखंड मानस पाठ बैठा लिया । दादाजी आपकी अनुपस्थिति में स्कूल बंद हो गए, परीक्षाएं बंद हो गई लेकिन चुनाव बंद नहीं हुए, निजी करण बंद नहीं हुआ, सार्वजनिक संस्थानों की बिक्री बंद नहीं हुई, ऐसी अव्यवसथा आप ही ठीक कीजिए । आपके ना रहने पर सब गड़बड़ हो चुका है । रात में कर्फ्यू लगता है दिन में लोग सड़कों पर घूमते हैं कोरोना का टाइम टेबल मिला कैसे ? सर इन बातों को छोड़िए दादाजी यह वचन है कि अब कोई रोजगार की बात नहीं करेगा अब कोई महंगाई का रोना नहीं रोएगा अब कोई आपको इस बात के लिए परेशान नहीं करेगा कि उसका अपना भविष्य क्या है क्योंकि अब लोगों ने अपने आप को आप के भरोसे छोड़ दिया ।
आप उनका भला ही चाहेंगे-- ना ।
यह लोगों को विश्वास हो गया । अगर आपने कह दिया कि यह कानून किसानों के हित में है तो अब उन्हें मानना ही पड़ेगा कि उनके हित में है ।अभी भी अगर किसान नहीं माने तो दादा जी बंगाल जीतने के बाद आप उन्हें मनवा लेंगे और उनसे उगलवा लेगे कि तीनों कानून उनके हित में हैं । उनके लाभ के लिए हैं ।उनके लिए वरदान है । देश इसी प्रकार से चलता है जब तक कोई बाहुबली ना हो तो देश के कदम डगमगाने लगते है ।
बड़ी मेहनत करके आपने सभी के कदमों को जो मजबूती दी है वह तारीफ के काबिल है बस! दादाजी, बस! आप बंगाल से लौटकर फिर से कमान संभालिए जरूरत पड़े तो लंबा सा एक लॉक डाउन लगा दीजिए ।हफ्ते 10 दिन में सब सुधर जाएंगे । खुशहाली लौट आएगी
वक्त पर उठाए गए आपके कदमों को लोग जरा देर से पहचान पाते हैं । वरना इनको तभी समझ में आ जाता कि आप स्वदेश में बनी वैक्सीन को दुनिया भर में भेज कर कितना पुण्य अर्जित कर रहे हैं ।उसी का परिणाम है कि जैसे ही देश में वैक्सीन की शॉर्टेज हुई आपको तुरंत विदेशों से वैक्सीन मिलने का प्रपोजल मिलने लगा इतने मधुर संबंध पहले कहां थे ? जो आज हैं अगर वैक्सीन बाहर नहीं भेजते तो हम बाहर से वैक्सीन क्यों मंगाते और अगर यह लेनदेन का काम नहीं चलता तो संबंध कैसे मजबूत बनते ? अब लोगों को समझ में आ रहा है कि दादाजी महान थे, महान है ,महान रहेंगे,
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