Header Ads Widget


 

Ticker

6/recent/ticker-posts

पत्रकारिता की गरिमा बनी रहनी चाहिए


 *आवारा कलम से*.        दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार           शहडोल    l  किसी भी जिले की पत्रकारिता का आईना जिला जनसंपर्क विभाग होता है , उस विभाग में अगर फाइल का रिकॉर्ड देखा जाए तो  पता चलता है कि एक लंबी सूची सामने आएगी कि जिन का अखबार ही नियमित प्रकाशित नहीं हो रहा और वह दमखम से हर ऑफिसों में सुबह शाम दोपहर धमाचौकडी करते दिखेंगे । 

गाड़ी पर आगे प्रेस , पीछे प्रेस का बोर्ड चमकेगा । 

इस समय सोशल मीडिया में एक्टिविटीज आंधी की तरह चल रही हैं । अधिकारी परेशान हैं यहां तक कि शहडोल की बात आपको बताएं तो दो-तीन ऑफिसरो ने अपने यहां सूचना चस्पा कर ली है कि किसी भी कक्ष में कोई पत्रकार बिना हम से परामर्श किए प्रवेश न करें । माना कि

ऐसा करना उनका अपना अधिकार है । गोपनीयता बरकरार रखना विभाग प्रमुख का दायित्व है । अधीनस्थ कर्मचारी काम कर सकें यह वातावरण भी देना विभाग प्रमुख का दायित्व है। 

दूसरी तरफ पत्रकारों का भी हक बनता है  जनहित में  प्रशासन के बीच  वह सेतु बने शहडोल में  एक लंबा अरसा बीत गया  कभी भी ऐसी स्थितियां नहीं बनी  के अधिकारियों को यह आदेश चस्पा करने पड़े हो  किंतु  वर्तमान में ऐसा हो रहा है  कबीर की भाषा में आत्म मंथन करें  तो निष्कर्ष निकलता है 

बुरा जो देखन मैं गया बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय ।  सामने वाली की तरफ एक उंगली उठाने की  स्थिति में 3 अंगुलियां स्वयं की तरफ होती है  अब यही चीज अगर  हम दूसरे से अपेक्षा करें  कि भाई स्वयं को पहले देख लो  तो मैं गलत ठहरा दिया जाऊंगा । एक बात  कलम के साथियों को  अपने मन में स्पष्ट कर लेनी चाहिए  कि संविधान में  कोई चौथा खंभा वर्णित नहीं है  । ना ही इस  चौथे स्तंभ को कोई अधिकार सोपे गए हैं । पत्रकारिता के क्षेत्र में जो लोग हैं  वे अपने विवेक से अपनी भाषा से  अपने बौद्धिक चातुर्य से  अपना स्थान बना सकते हैं  लेकिन देखने में आ रहा है कि कुछ पत्रकार संविधान का छाता लगा कर अभिव्यक्ति की आजादी की छड़ी पकड़कर कूदने फादने लगते हैं । नोटिस चस्पा हो जाने का यह अर्थ नहीं है की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित किया गया है अभिव्यक्ति की आजादी को  किसी भी सरकारी विभाग प्रमुख ने बाधित नहीं किया । आप कोई भी सवाल पूछिए जो अधिकृत अधिकारी है उसका वही जवाब देगा सरकारी अमले का हर कर्मचारी प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए या वाइट देने के लिए अधिकृत नहीं होता इस चीज की जानकारी रखे बिना लोकतंत्र के चौथे खंभे पर वज्राघात जैसे शब्दों का शंखनाद किया जाता है । 

हमारा पडौसी जिले मै जाना हुआ । वहां के एक अधिकारी ने बताया कि यहां जितने संगठन हैं उनकी एक दूसरे से बनती ही नहीं । सभी संगठनों के कुछ लोग उनके संपर्क में हैं जो एक की बुराई दूसरे से करते हैं ।  विष वमन करते है । अधिकारियों में और जनता में आज पत्रकार हंसी का पात्र होता जा रहा है । निश्चित ही मन करता है की इस की आन--बान और शान बनाए रखने के लिए किसी न किसी को गंदगी तो साफ करनी ही होगी।

पत्रकारिता एक मिशन है इस शब्दावली को भूलकर लोग कुछ लोग भटक गए हैं । काश कार्यशाला के माध्यम से या बुजुर्गों के अनुभवों से अथवा अन्य और किसी तरीके से वह पत्रिकारिता का सैद्धांतिक अर्थ साबित करने लगे तो निश्चित यह लोकतंत्र और मजबूत होगा ।

Post a Comment

0 Comments