*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
शहडोल l जिले में आज भी कई ऐसे परिवार हैं जिनके लिए जमीन बिछौना है और आसमान चादर ।
हमारी निर्वाचित सरकारें इसी वर्ग को लक्ष्य बनाकर दिन-रात गहन मंथन करती हैं कि हर व्यक्ति को उसके सिर पर छत मिले और इस काम के लिए वह भांति भांति की आवास योजनाएं सामने लाती है । जहां तक शहडोल जिले का सवाल है आवास योजनाओं से संबंधित क्रियान्वयन प्रणाली दम तोड़ती नजर आती है । शहरी क्षेत्र का हाल यह है कि योजना से प्रभावित होकर अनेक परिवारों ने अपने जर्जर छानी छप्पर स्वयं उखाड़ फेंके कि हमें पक्का मकान मिलेगा लेकिन उचित मार्गदर्शन के अभाव में उन्हें योजना का आधा अधूरा लाभ मिला परिणाम यह है कि उनका ना तो पुराना छप्पर बचा और ना नई छत मिली । कागजी घोड़े लेकर यह स्वयं सरकारी दफ्तरों के चक्कर पर चक्कर लगा रहे हैं लेकिन दूर दूर तक इन्हें आशा की किरण दिखाई नहीं दे रही। हां यह भी सच है कि कुछ चतुर चालाक लोगों ने आवास योजना को कमाई का धंधा बनाया और उसे अनावश्यक रूप से खर्च कर डाला इस प्रकार के लोगों के ऊपर अगर वसूली की कार्यवाही अथवा दंडात्मक कार्यवाही होती है तो किसी को कोई गुरेज नहीं होगा लेकिन कार्यवाही होना इसलिए दूर की बात है कि संबंधित अमले ने उनका साथ दिया और खाने पीने में अपनी हिस्सेदारी भी ले ली। ग्रामीण क्षेत्रों का हाल और बेहाल है आवासीय योजनाओं में तैयार किए गए मकान जर्जर अवस्था में देखे जा सकते हैं जिनमें न खिडकी है , न दरवाजे हैं न छत बची है । इसके पीछे ग्रामीणों ने जो कारण बताए वह चौकाने वाले है । उन्हें कॉलोनी में रहने की आदत नहीं है , ना ही कॉलोनी कल्चर पसंद है इसीलिए उन्होंने मकानों पर कब्जा नहीं किया। दूसरी तरफ ग्रामीणों का कहना था कि वहां पर न जीवकोपार्जन के साधन है, न पानी की समुचित व्यवस्था है, न जानवरों को रखने का स्थान है। ऐसी स्थिति में हम वहां रहना पसंद नहीं करते इन तथ्यों से यही स्पष्ट होता है की आवासी योजना बनाते समय फिर से सोच विचार की आवश्यकता है ताकि योजनाओं का लाभ उस हितग्राही तक पहुंचे जिसके लिए योजना बनाई गई है, वरना लोग मंगलग्रह और चांद पर पहुंचते रहेंगे और यहां गरीब आदमी खुले आसमान के नीचे अपने परिवार के साथ दम तोड़ता रहेगा ।
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