*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
शहडोल जैसी जगह में एक ज्वलंत मुद्दे पर अच्छी डिबेट देखने
को मिली । विशाल जी, अरविंद जी, श्रीवास्तव जी और चंदेल साहब बड़े पेशेंस के साथ इस डिबेट में अपनी--अपनी बात रखने में कामयाब हुए । धीरे-धीरे इस परिचर्चा में और निखार आएगा, ऐसी मेरी शुभकामनाएं है । यह विषय गंभीर है और गंभीरता को देखते हुए कहना होगा कि सीमित वक्त में सारे वक्ता अपनी पूरी बात नहीं रख पाए फिर कभी किसी मंच पर इन्हें सुनने को मिलेगा । सभी ने *गागर में सागर* समेटने का प्रयास किया है । इस परिचर्चा से हटके केंद्र सरकार से एक सवाल पूछने का मन करता है कि आज सोशल मीडिया स्वच्छंद दिखा तो आपने नियमन की गाइडलाइन बना ली । कल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया क्या स्वच्छंदता के दायरे मे नहीं घसीटे जाएंगे ?आज यह दोनों सोशल मीडिया के प्रति मौन हैं। कल एक-एक करके सभी को मौनी बाबा तो नहीं बना दिया जाएगा ? इस बात को ऐसे समझा जाए कि एक न्यूज़ चैनल पर सो सॉरी का एक खेल चलता है जिसमें कार्टून बनाकर सत्ता पक्ष के लोगों को इस प्रकार दिखाया जाता है कि वह विपक्ष पर भारी पड़े । अगर इस चैनल ने किसी मुद्दे पर विपक्ष को भारी दिखा दिया तो उस पर स्वच्छंदता के नियमन की परिभाषा लागू हो जाएगी या नही होगी ?यही *शंका* सोशल मीडिया की स्वछंदता पर लाई गई गाइड लाइन पर सामने आकर खड़ी हो जाती है ।
यह टेक्नोलॉजी भारत में कभी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी जी लाए थे परंतु इसका उपयोग भारतीय जनता पार्टी ने किया। इस हद तक किया की ई मेंबर शिप भी संगठन के लिए शुरू की थी यह अलग बात है की धुआंधार सदस्य बनाए जाने के कारण संगठन लौटकर फिर पुरानी पद्धति पर आ गया, सोशल मीडिया इस देश के लिए अभिशाप है ऐसा नहीं कहा जा सकता । इसकी उपयोगिता और तीव्रता इस बात से आंकी जाती है की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को किसी घटना या समाचार को पाठकों के पास तक पहुंचाने में 4 घंटे लगते हैं वही सोशल मीडिया चंद सेकेंड में किसी समाचार को पूरे देश में वायरल कर देता है । प्रिंट मीडिया को समाचार प्रकाशन करने में कम से कम 8 से 12 घंटे लगते हैं। ऐसी स्थिति में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का एक अच्छा मंच है।
मैं अगर इस सोशल मीडिया का दूसरा पहलू देखूं तो बिना प्रशिक्षण के इसका प्रयोग करने वाले कुछ स्वच्छंद लोग हैं जो विषय की गंभीरता को न समझ कर मजाक मजाक में मजाकिया सामग्री परोस देते हैं, जो आगे चलकर किसी को भी कष्टदायक लग सकती है । ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति अपनी शिकायत भी कहीं दर्ज नहीं करा सकता, उसके लिए एक प्लेटफार्म की आवश्यकता थी । निश्चित ही केंद्र सरकार ने यह गाइडलाइन बनाकर उस पीड़ित व्यक्ति को यह संबल प्रदान किया है कि वह अपनी शिकायत व्यक्त कर सकता है और कार्यवाही करा सकता है हो सकता है इस भय से सोशल मीडिया में छाई स्वच्छंदता पर विराम लगे । यहां यह भी समझना लाजमी है की स्वच्छंदता और स्वतंत्रता दोनों में बहुत फर्क है सरकार स्वतंत्रता को बाधित नहीं कर रही बल्कि स्वच्छंदता को रोकने का प्रयास कर रही है। जहां तक मेरा मानना है की डिजिटल मीडिया के मामले में यूज़र ने सोशल मीडिया की शुरुआत 11 दिसंबर 2018 से की थी । इसकी स्वच्छंदता पर सुप्रीम कोर्ट ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी थी और कहा था की चाइल्ड पॉर्नोग्राफी, रेप, गैंगरेप से जुड़े कंटेंट को डिजिटल प्लेटफॉर्म से हटाने के लिए जरूरी गाइडलाइन बनाई जानी चाहिए । इसी दिशा निर्देश के बाद सरकार ने 24 दिसंबर 2018 को ड्राफ्ट तैयार किया । इस पर 177 कमैंट्स आए सरकार ने गाइड लाइन में 4 शब्दों का उपयोग किया है *पहला* इंटरमीडियरीज *दूसरा* सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज *तीसरा* सिग्निफिकेंट सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज चौथा है ओटीटी प्लेटफॉर्म विचार नहीं है कि सोशल मीडिया साइट्स और *चौथा* ओटीटी मंचों की सामग्री न सिर्फ दुनिया भर में देखी जाती है बल्कि कई बार ऐसे कंटेंट का हवाला देकर अफवाहों को और नकारात्मक बना दिया जाता है । देश की गरिमा को ठेस पहुंचाने के कुत्सित प्रयासों को रोकना लाजमी है । पर्व और त्योहारों पर दुष्प्रचार फैलाया जाता है उसे भी रोकना लाजमी हैं । ध्यान रखने लायक यह बातें हैं कि इसका दुरुपयोग ना हो । गाइडलाइन स्वतंत्रता को बाधित ना करे ।
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