*आवारा कलम से* दिनेश अग्रवाल वरिष्ठ पत्रकार
शहडोल l जिले के साथ-साथ अन्य कई जिलों में शिक्षा की स्थिति फिलहाल अच्छी नहीं है । बच्चों में और बच्चों के अभिभावकों में भविष्य के प्रति एक भय छुपा हुआ है और यह है तब भयानक रूप ले लेता है जब वह देखते हैं कि ग्राम बहरहा से पिकअप में बैठा कर 12 13 बड़ी बच्चियां 10 12 बच्चे कलेक्ट्रेट लाए गए ।
उनकी मांग थी कि मार्च का महीना चल रहा है और स्कूल में शिक्षक नहीं है । कोई भी सुनकर अंदाजा लगा सकता है कि स्कूल में अध्यापन और अध्ययन की स्थिति क्या होगी । बच्चों की इस मांग पर कुछ संवेदनशील अधिकारियों द्वारा बहरहा का हाई स्कूल 8 किलोमीटर दूर अकुरी हाई सेकेंडरी से अटैच कर दिया गया । यह 8 किलोमीटर का रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है , कोई भी अभिभावक अच्छे खासे स्कूल को बंद होता देख और बच्चों को 8 किलोमीटर प्रतिदिन आने जाने की समस्या देख के विचलित हो जाएगा । बच्चों से बातचीत करने पर इस बात की जानकारी और हुई कि इनके के पास साइकिल भी नहीं है ।जब साइकिल का वितरण हो रहा था तोok स्थानीय बच्चे हैं यह कह कर इन्हें साइकिल नहीं दी गई ।अब पूरा स्कूल अटैच कर दिया गया तो बच्चे परेशान है संयुक्त संचालक ट्राइबल का यह कहना है कि शिक्षा विभाग द्वारा खोले गए हाई स्कूल में संविदा की शर्तों पर कुछ शिक्षक रखे गए थे जिनका अनुबंध खत्म हो गया अब नए शिक्षक रखना फिर उनका वेतन आहरण करना एक जटिल प्रक्रिया है । शहडोल कलेक्टर से परामर्श करने के बाद ही कुछ किया जा सकता है सभी बच्चे और अभिभावक अपने गांव लौट गए , इस आशा और विश्वास में कि शिक्षा सत्र के अंतिम पायदान पर इन बच्चों को अपने भविष्य का दीप प्रज्वलित करने के लिए कलेक्टर की संवेदना का साथ मिल सकता है । यह पहला स्कूल या पहला हादसा नहीं है । जिले के कई स्कूल ऐसे हैं जो शिक्षक विहीन हैं ।कही-कही एकल शिक्षक है और वह शिक्षक भी विभागीय कार्यों से नदारद रहते है नई भर्तियां हो नहीं रही है और विकास के महागान की ताल ठोकी जा रही है ।अच्छे दिनों का वास्ता दिया जा रहा है और चांद पर ले चलने की तैयारी की जा रही है विपक्ष को कोसा जा रहा है और अपनी पीठ थपथपाई जा रही है। महंगाई से परे हटकर मंदिर की खिड़कियों से सुनहरा नजारा देखा जा रहा है ।राम ही जाने मामा और भांजों के बीच में यह कैसी रस्साकशी है मामा को अपनी पड़ी है और भांजे भांजीयों को अपनी पड़ी है। विधायक अपना कर्तव्य समझते तो हैं लेकिन निर्माण कार्यों के प्रति जो रुचि रखते हैं वैसी अन्य कार्यों में पता नहीं क्यों नहीं देखने को मिलती । अब एक 2 साल और बचे हैं उनका रुझान समारोह और पुरस्कार वितरण से हटकर धरातल की ओर शायद लगे ।
आशा और विश्वास के साथ निजी क्षेत्र के स्कूलों का हालचाल अभिभावकों के पास हिफाजत से सुरक्षित है ।रुपक।
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